भारत रत्न केवल एक पुरस्कार ही नहीं है वह भारत का सम्मान है और 1 अरब भारतीयों का मान है,भारत रत्न। 1954 से प्रारम्भ हुए भारत रत्न के बारे में साफ लिखा है कि भारत रत्न, कला, विज्ञान, साहित्य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले को प्रदान किया जाता है। भारत रत्न जिसको भी मिला वह कम या अधिक सभी हकदार थे। मगर सचिन रमेश तेंन्दुलकर कही से भारत रत्न के हकदार नहीं है। उन्होनें जितने भी मैच खेले सबका मुल्य लिया। जहॉं तक मेरी जानकारी है। एक प्रतियोगिता उनके पूरे कैरियर में रही थी जिसमें वह शानदार खेले और अपने दम पर प्रतियोगिता जीते। मैं दावे के साथ कह सकता हॅूं कि वह निजी रिकार्ड के अतरिक्त हर क्षेत्र में असफल थे। एक कप्तान के रूप में वह बुरी तरह असफल हुए,उनके रहते केवल इस आधार पर कि दबाव में उनकी बल्लेवाजी प्रभावित हो रही है उसने जूनियरों केा कप्तान बनाया गया । वह खिलाडी ही क्या जो दबाव ना सहे।
ठहरे हुए पानी में सब कश्ती पार लगा सकते है, जरा तुफानो से लाओ कश्ती निकाल के।
तब जाने की कुशल चालक हो। बहुत ही कम अवसर ऐसे आये जब वह दबाब से निकाल कर टीम को जीत दिलाये हो। उनके पूरे कैरियर काल में जितने भी विश्व कप हुए किसी में उनका प्रर्दशन औसत ही रहा हैं। केन्या, जिम्माबाम्बे एंव आयरलैन्ड जैसी टीमों के खिलाफ तो इनका प्रर्दशन ठीक रहा है मगर अन्य देशों के खिलाफ इनका प्रदर्शन औसत भी नहीं रहा है। हम ये नहीं कहते कि जिनके खिलाफ इनका प्रर्दशन ठीक रहा है वह कमजोर टीमे थी, मगर वह ऐसी टीमे भी नहीं थी जिसको एक सशक्त विरोधी का दर्जा दिया जाये। इस लिये मेरा मानना है कि व्यक्तिगत प्रर्दशन के आधार पर भारत रत्न दिया जाना भारत की जनता के सम्मान के खिलाफ हैं। अगर तेन्दुलकर केा दिया गया तो उसके पहले ध्यानचंद को,अटल बिहारी बाजपेयी को क्येां नही । अगर बात किक्रेट की है तो फिर कपिल देव को,सुनील गवास्कर को क्यो नहीं दिया गया भारत रत्न क्या वह विश्व स्तर के खिलाडी नहीं थे या उन्होने भारतीय क्रिकेट को नया आयाम नहीं दिया, क्या उन्होनें भारतीय किक्रेट को सम्मान नहीं दिया। आज के दौर में बैटिंग करना बहुत आसान है ।बालरो के हाथ बॉंध दिये गये है। बालर बाउन्सर नहीं फेक सकते।लेग स्टम्प के बाहर से गेद नहीं निकाल सकते। रिप्ले के आधार पर आउट दिया जाता है। तीसरी ऑंख के फैसले के आधार पर आउट दिया जाता है। उससे भी दिल ना भरा तो रिवियू दिया जाता है।क्षेत्ररक्षण भी ऐसा की कभी दायरे से दो बाहर तो कभी दायरे में चार अंदर चारो तरफ से बल्लेबाज की चॉंदी मगर याद कीजिए पहले ऐसा नहीं था बालर वाउन्सर मार कर बल्लेवाजों को घायल कर देता था।ग्राउन्ड एम्पायर आउट दिया तो गये आप। गेद स्पंटम के देानेा तरफ फेकी जाती थी। उस समय पर जब हमारे पास संसाधन नहीं थे कपिल देव ने 175 रन की पारी खेल कर,भारत को फाइनल तक ले गये। फाइनल के मैच में विवियन रिर्चडस का वो ऐसा कैच लिया जिसको आज भी लोग याद करते है। भारत विदेशी धरती पर अजेय समझे जाने वाले दो बार की विजेता वेस्टन्डीज को हराने का काम कर विश्वविजेता बना।वन डे में टेस्ट मे सबेस ज्यादा विकेट लेने वाले खिलाडी भी कपिल रहे है। वही गावस्कर ने टेस्ट क्रिकेट में 10हजार रन बनाने का कारनामा सबसे पहले किया । क्येा नहीं इन दोनेा खिलाडीयों को भारत रत्न दिया। क्यो किसी को मरने के तुरंन्त बाद मिल जाता है । किसको 32 मरने के बाद 32 साल इंन्तजार करना पडता है। क्यों नहीं जिसक आदमी को भारत देने की मॉंग सारी दुनिया कर रही है उसको दिया जाता है। और आनन* फानन में ऐसे आदमी को भारत रत्न दे दिया जाता है, जिसका देश सेवा से कोई सरोकार ही नहीं। जिसने खुद कभी सपने में भी नहीं सोचागा होगा की हमें भारत रत्न मिलेगा। आप मेरी बात का अन्यथा ना ले आज जो हो रहा है वह दावे के साथ कह सकता हूँ कि भारत रत्न राजनीति का शिकार है । और आज देश से सेवा नहीं,सत्कार इसका मानक बन गया है।
भारत रत्न अब नहीं रह गया खास है, यह तो बन गया एक आम पुरस्कार है। जब भारत के रत्न ऐसे होने लगे ,सिसक कर भारत
मौलिक एवं अप्रकाशित
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आदरणीय , !!!!! ये चुनावी चक्कर मे अति शीघ्रता से लिया गया फैसला ज़रूर है !!!!!
आदणीये मैने सचिन के पक्ष या विपक्ष में कुछ भी नहीं लिखने का प्रयास किया मैने तो केवल उनके भारत रत्न के सम्मान पर आवाज उठायी है।कि आखिर क्यों दिया गया आनन-फानन में तेंन्दुलकर को भारत रत्न, महोदय आप सब हमारे मार्ग दर्शक है, आखिर मैं कहॅा गलत हूँ, भारत रत्न आज तक कभी किसी खेल में नहीं दिया गया फिर यह परम्परा की शुरूआत आनन-फानन में क्यों, क्यों नहीं उससे भी जो श्रेष्ठ थे उनको दिया गया यह पुरस्कार, क्या निभा पायेगे गरिमा तेंन्दुलकर भारत रत्न की,
आदरणीय गहमरी जी, कृपया लेख के नीचे "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना न भूले, आप एडिट कर लें या एडमिन / प्रधान संपादक से लिखित अनुरोध कर एडिट करवा लें ।
बड़ी आग है मित्र
थोडा धीरज धरो भाई
लेखन में हमेशा मध्यम मार्ग उचित होता है
अगर आप किसी पर अपना निष्कर्ष थोपते है
तो आप असफलं है --- सोचिये
सचिन के पक्ष में भी कितना कुछ लिखा जा सकता है i आप मेरे मित्र् है, इसीलिये इतना कहा i
आदरणीय अखंड बिलकुल सही कहा और बहुत बहुत बधाई जो आपने कहने का साहस किया
पर सभी पुरुस्कारों का हाल यही है और यह भी विचारणीय है कि पुरूस्कार देने वाले जब
इतने विवेक हीन हैं तो ऐसा होने पर कोई आश्चर्य नही है और सबसे विवेक हीन इस देश
कि जनता जो ऐसे लोगों को चुनती है खैर हमारी भी एक आदत है हम जड़ों की खोज करते नही
और टहनियों का उपचार करते हैं ।
आपकी भावना से मेरी पूर्णतः सहमति..
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