लाल लहू से अपने जिसने,देश की धरती कर दिया
नित्य नई खोजों में,जीवन के सुख छोड दिया
वेा भारत का वीर सपूत,गुमनामी में खो गया
देश को दे कर नये आयाम वेा बेनाम हो गया
शिकार राजनीति का, भारत रत्न हो गया।
ध्यानचंद जैसा जादूगर, आज बेनाम हो गया
विदेशी धरती पर जो हुआ विजेता, कपिल गुम हो
खेलों के कितने मसीहा का दीपक अब बुझ गया
रत्नो के रत्न कितने,वो गुमनामी में खो गया
शिकार राजनीति का भारत रत्न होगया।
आजादी के जंग में सब कुछ उसका खो गया
जीने केा वेवसी में आज उनका बच्चा हो गया
कागज का चंद टुकडा भी दूर उससे हो गया
झिलमिल सितारो के बीच सपना उसका खो गया
शिकार राजनीति का भारत रत्न हो गया।
सालों बाद मिला किसी को,किसी का जल्दी हो गया
जिसने सीचा लहू से भारत, वो दूर इससे हो गया
आधुनिकता के चकाचौध पर नसीब हो गया
सेवा नहीं सत्कार अब इसका मानक हो गया
शिकार राजनीति का भारत रत्न हो गया ।
संविधान के रक्षको ने इस का भी भक्षण कर लिया
देश सेवा पर पाने का इसको अब जमाना खो गया
सेवा से सरोकार नहीं जिसने चाहा रत्न हो गया
भारत रत्न की देश दुर्दशा बच्चा बच्चा बोल पडा
शिकार राजनीति का भारत रत्न हो गया ।
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी की प्रस्तुति
Comment
//अपने दिल में आयी हर बात को हम जिस रूप में चाहे उस रूप में जनमानस के सामने रख सकते है//
अखंड जी आपके कहे से सहमत हूँ... पर जब अभिव्यक्ति सहज न लगे तो काव्य आरोपित ही लगता है ..जिससे रचनाकार को बचना चाहिए
//अपनी प्रस्तुति पर आप से कहना चाहूँगा कि अपनी बात आप कह सकते हैं जिस रूप में चाहे उस रूप बस उसके पटल पर रखने के स्थान के बारे में निर्णय पटल संचालक या पटल प्रशासन को करना हेाता है//
आपकी रचना को इस रूप में इसीलिए स्वीकृति मिली है की उस पर सार्थक चर्चा हो सके और आप हम सभी लोग लाभान्वित हों..
इसे हम सकारात्मक सार्थक आयाम में ही समझें तो यह शायद सभी के लिए सम्वर्धन का कारण हो
शुभकामनाएं
परम आदरणीया दीदी जी आप की बात एक दम सही है कि यह कविता शिल्प कथ्य सयोजन से दूर है, इस कविता के रचनाकार को परिपक्वता के लिये काफी समय देना होगा। शायद यही परिपक्वता सीखने हेतु इस मंच से हम जुडे़ है जिसका हमको गर्व है। मगर दीदी जहॉं तक मेरी समझ है अपने दिल में आयी हर बात को हम जिस रूप में चाहे उस रूप में जनमानस के सामने रख सकते है, यदि ऐसा नहीं होता तो शायद मैं किसी ज्वलंन्त समस्या पर या बातो पर कविता ना देख पाता ना सुन पाता। मैं अपने शिल्प कथ्य संयोजन, भाषा की कमी एवं गलतीयों पर तो आपकी बात को स्वीकार करते हुए आपका आभारी हूँ जेा आपने मेरा मार्गर्दशन किया और आशा है कि भविष्य में भी करती रहेगी। पर जो कविता के रूप में अपनी प्रस्तुति पर आप से कहना चाहूँगा कि अपनी बात आप कह सकते हैं जिस रूप में चाहे उस रूप बस उसके पटल पर रखने के स्थान के बारे में निर्णय पटल संचालक या पटल प्रशासन को करना हेाता है '''''सधन्यवाद आपका अखंड गहमरी
किसी भी मुद्दे पर अपनी राय होना एक बात है...पर हर मुद्दे पर कविता का रूप आरोपित करना क्या सही है..?
भाषा व्याकरण शिल्प कथ्य-संयोजन हर लिहाज से ये प्रस्तुति बहुत बहुत समय और परिपक्वता की मांग करती है.
बेहतर होता इस विषय पर आप एक चर्चा 'सामाजिक सरोकार' या 'खेल और मनोरंजन समूह' में आरम्भ करते ..
शुभकामनाएं
सुन्दर प्रयास. विद्जन की टीप पर मनन करें. सादर................
आदरणीय अखंड जी ..आपके प्रयास को नमन ..लेकिन डॉ गोपाल जी के परामर्श ध्यान देने योग्य है ..सादर
अखंड जी
कभी किसी को मुकम्मिल जहाँ नहीं मिलता
किसी को जमी तो किसी को आस्मा नहीं मिलता
जिन्हें भारत रत्न मिला वे उसके हक़दार थे, और भी है
पर हम इसे सियासत न कहें तो बेह्तर होगा i
हाँ हम औरो के लिए मांग करे यह सही विकल्प है i सस्नेह i
आदरणीय गहमरीजी, शतप्रतिशत सत्य प्रासंगिक, भावपूर्ण रचना के लिये आपको बहुत बुत बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online