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दो अतुकांत - वैचारिक रचनाएँ ( गिरिराज भंडारी )

1- आंतरिक सम्बन्ध

**************

मैंने पीटा तो दरवाज़ा था
हिल उठी साँकल ...

खड़ खड़ कर के .... 

और..

आवाज़ अन्दर से आयी

कौन है बे.... ?

बस...

मै समझ गया

तीनों के आंतरिक सम्बन्धों को

******

 2- आग और पानी

*****************

आग बुझे या न बुझे

आग लग जाना दुर्घटना है, या साजिश

किसे मतलब है

इन बेमतलब के सवालों से

 

ज़रूरी है,  अधिकार ....

पानी पर

सारा झगड़ा इसी का है

 

उस समय भी जब आग लगी हो

और उस समय भी जब आग न लगी हो

 

क्यों कि ,

ये पानी उतना ही छिड़कना चाहते हैं , जितने से

घर तो बच जाये .. जलने से  

पर,

आग न भुझे  ...

सुलगती रहे अन्दर ही अन्दर   

फूँक भी देते हैं कभी धीरे से

मुँह छिपा के ...

 

क्यों कि

ज़रूरी है,

जूतों का औकात मे रहना ...

सर तो टोपी के लिये है न ।

************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on May 6, 2017 at 12:14pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब,करारे कटाक्ष । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2017 at 9:50am
आदरणीय गिरीराज भंडारी जी बहुत ही सुंदर व्यंग्य है मौजूदा हालात पर। सादर बधाई प्रेषित है।

कृपया ध्यान दे...

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