For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कौन सा साहित्य रचते हो (1)--डॉo विजय शंकर

क्या करते हो,
कौन सा साहित्य रचते हो,
क्यों रचते हो ,
किसके लिए रचते हो ?
स्वान्तः सुखाय ,
कोई पढ़ता है ,
ऐसा लिख देते हो ,
अर्थ ढूंढना पड़ता है ,
जो है ही नहीं वो
निकालना पड़ता है ,
गाय है , घास है,
गाय घास खा चुकी ,
गाय जा चुकी ,
अब कुछ नहीं ,
सब अदृश्य है, पर है ,
समझ से परे है, पर है ,
क्योंकि लिखा है तुमने ,
जिनको दिख जाए , चक्षुवान।
बाकी ,
बाकी के लिए कहाँ लिखते हो तुम ,
तुम तो अपने लिए लिखते हो,
और कहते हो साहित्य दर्पण होता है,
तुम जो गढ़ते हो वो कितना धुंधला दर्पण है ,
धुंधला नहीं , वैज्ञानिक है, दिखाता कुछ है,
बताता कुछ है, होता बिलकुल ही कुछ और है।
अलग तरह का लिखते हो, लिख कर कुछ अलग दिखते हो,
जिनके लिए लिखते हो , उनसे ही अलग दिखते हो,
अलग दिखने के लिए लिखते हो ,
इसीलिये तो साहित्य से नहीं जुड़ते हो ,
जिनके लिए लिखते हो उनसे नहीं जुड़ते हो,
गज़ब है, फिर क्यों लिखते हो,
क्या , दोज अनहर्ड आर स्वीटर ,
तो कुछ मत कहो , कुछ मत लिखो ,
सब अनहर्ड रहने दो, स्वीट , स्वीट , स्वीटर ,
लोगों को बुनने , बनाने , सजाने दो ,
अपने अपने स्वीट , स्वीट , स्वीटर ||

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 9:22am
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, रचना को आपकी स्वीकृति के लिए बहुत बहुत आभार. आपकी सद्भाभावनाओं , बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद, सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 9:19am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, आपने रचना को स्वीकार किया, आभार. आपकी सद्भाभावनाओं , बधाई हेतु धन्यवाद, सादर.
Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 9:11am

आदरणीय विजयशंकर सर सटीक और सशक्त रचना हेतु हृदय से बधाई निवेदित है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 2:21am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर,सुन्दर रचना है  // अलग तरह का लिखते हो, लिख कर कुछ अलग दिखते हो,

जिनके लिए लिखते हो , उनसे ही अलग दिखते हो, अलग दिखने के लिए लिखते हो//... बेहतरीन प्रस्तुति , हार्दिक बधाई , सादर !

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 10:39pm
आदरणीय डॉo उषा चौधरी साहनी जी,
प्रस्तुति आपको पसंद आई , बहुत बहुत धन्यवाद। आपकी सद्भावनाओं के लिए धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 10:36pm
आदरणीय डॉo कँवर करतार खंदेह्ड़वी जी,
प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । आपको प्रस्तुति पसंद आई , आपका आभार. आपकी सद्भावनाओं और बधाइयों के लिए ह्रदय से कोटिश:धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 10:31pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी,
बहुत सही कहा अपने आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की कविता तो बैठ ही चुकी है मेरे जहन में, फिर हम दोनों सोचते भी एक ही दिशा में हैं इसलिए यह साम्य अनायास नहीं है। आपकी सद्भावनाओं हेतु आभार और बधाइयों के लिए ह्रदय से धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 10:23pm
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी,
एक ही पंक्ति में बहुत कुछ कह दिया आपने , आभार, आपकी सद्भावनाओं और बधाइयों के लिए ह्रदय से धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 10:17pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
साहित्य के प्रति आपकी अभिरुचि, सेवा , समर्पण, सभी कुछ बहुत ही श्लाघनीय है। आप चिंतन भी करते हैं, आपका ध्यान इस प्रस्तुति पर ठहरना इसी की पुष्टि करता है। गीत - रचना पर आपके विचार सम्माननीय हैं, फिर हमारे यहां तो इनकी बड़ी दीर्घ परम्परा रही है, अक्सर देखने में आता है कि जो काम एक दो पंक्तियों के गीत कर गए वह एक भारी पुस्तक नहीं कर पायी। यही मेरा निवेदन भी है , साहित्य बहुत अधिक ग्राह्य होना चाहिए , उसके मर्म बहुत छोटे छोटे ग्रास में होने चाहिए ताकि लोग स्वतः उसे चुग लें। वो धीरे -धीरे जीवन से स्वतः जुड़ने लगेगा।
इस पर आगे भी चर्चा होगी , मेरा संकेत कहीं और है , आप देखेंगे।
आपने समय दिया , बहुत बहुत आभार , आपकी सद्भावनाओं , बधाइयों के लिए ह्रदय से धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 9:53pm
प्रिय मिथिलेश जी , आपकी टिप्पणी हेतु आभार। आपकी बधाई ले लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

AMAN SINHA posted blog posts
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
19 hours ago
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Nov 7
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Nov 6
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Nov 6
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service