2122 2122 2122 212
बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये
अब यहाँ फूटेगा बातों का बताशा देखिये//१
संग नेता के कुलाचें भर रही जो भीड़ ये
घर पहुंचकर इसके जीवन की हताशा देखिये //२
हर गली हर मोड़ पे भूखों की लंबी फ़ौज़ है
बज रहा है खूब अच्छे दिन का ताशा देखिये //३
ज़ुल्म का तूफ़ां कभी ठहरा नहीं है देर तक
हर नज़र में है यही मज़बूत आशा देखिये//४
सामने सागर है इसको है पता कुछ भी नहीं
भागता घोड़े पे चढ़कर बेतहाशा देखिये //५
-- क़मर जौनपुरी
Comment
सोशल साइट्स पर साझा करने लायक रचना।
वाह। कुछ स्पष्ट, तो कुछ सांकेतिक, समसामयिक मुद्दों पर बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय क़मर जौनपुरी साहिब।
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