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गज़ल - 10 ( मौत से एक बार भागा था/ मौत का रोज़ ही शिकार हुआ)


2122 1212 22/112

जब से हमदम सिपहसलार हुआ
सबसे ज़्यादा हमीं पे वार हुआ//1

मौत से एक बार भागा जो
मौत का रोज़ ही शिकार हुआ //2

दिल के आँगन में चाँद उतरा जब
दिल का आँगन सदाबहार हुआ//3

आज फिर आग में जली दुल्हन
आज फिर हिन्द शर्मसार हुआ//4

मैं तो खुद ही मिटा मुहब्बत में
कौन कहता है मैं शिकार हुआ// 5

दूर इक बर्फ की शिला था मैं
तेरे छूने से आबशार हुआ//6

बेक़रारी भले मिली तुमसे
दिल को फिर भी अज़ब क़रार हुआ//7

-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:04am

आदरणीय क़मर जौनपुरी जी आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की पेशकश पे दिली मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Mohammed Arif on November 30, 2018 at 1:29pm

आदरणीय क़मर जौनपुरी जी आदाब,

                    बहुत उम्दा ग़ज़ल । ख़ासतौर से तीसरा शे'र पसंद आया । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

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