2122 1212 22/112
जब से हमदम सिपहसलार हुआ
सबसे ज़्यादा हमीं पे वार हुआ//1
मौत से एक बार भागा जो
मौत का रोज़ ही शिकार हुआ //2
दिल के आँगन में चाँद उतरा जब
दिल का आँगन सदाबहार हुआ//3
आज फिर आग में जली दुल्हन
आज फिर हिन्द शर्मसार हुआ//4
मैं तो खुद ही मिटा मुहब्बत में
कौन कहता है मैं शिकार हुआ// 5
दूर इक बर्फ की शिला था मैं
तेरे छूने से आबशार हुआ//6
बेक़रारी भले मिली तुमसे
दिल को फिर भी अज़ब क़रार हुआ//7
-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय क़मर जौनपुरी जी आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की पेशकश पे दिली मुबारकबाद. सादर.
आदरणीय क़मर जौनपुरी जी आदाब,
बहुत उम्दा ग़ज़ल । ख़ासतौर से तीसरा शे'र पसंद आया । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
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