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माँ
***
माँ जिधर भी नज़र उठाती है
वो ज़मीं हँसती मुस्कुराती है//१
हर बला दूर ही ठहर जाए
माँ उसे डांट जब लगाती है //२
माँ के कदमों से दूर जाए जो
ज़िन्दगी फिर उसे रुलाती है //३
पास जब मौत आए बच्चों के
तब तो माँ जां पे खेल जाती है //४
जब कभी भूल हमसे हो जाए
माँ ही दामन में तब छुपाती है //५
भूख के साये में न हों बच्चे
खुद को माँ धूप में सुखाती है //६
मुस्कुराहट बनी रहे घर में
घर के सब बोझ माँ उठाती है //९
चैन की नींद वो ही सो पाए
माँ जिसे लोरियाँ सुनाती है //८
मां के दामन में सिर्फ प्यार भरा
प्यार ही प्यार वो लुटाती है //९
चोट खाता क़मर कहीं भी जब
लब पे तब सिर्फ़ माँ ही आती है//१०
-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत अच्छे भाव व्यक्त हुए
हार्दिक बधाई आदरणीय क़मर जौनपुरी जी।बेहतरीन गज़ल।
मुस्कुराहट बनी रहे घर में
घर के सब बोझ माँ उठाती है //९
आ. भाई कमर जी, माँ को समर्पित सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब राज़ साहब हौसला आफ़ज़ाई के लिए
जनाब क़मर जौनपुरी साहब आदाब, इस ख़ूबसूरत पेशकश पे दिल से मुबारकबाद. सादर
बहुत बहुत आदाब व शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब। आपकी मुहर लग गई, ग़ज़ल मुकम्मल हो गई।
जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब, माँ को समर्पित अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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