For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"महकती रोती दुनिया" - [लघु कथा - 15]

"महकती रोती दुनिया" - [लघु कथा]

"बड़े ग़ज़ब की बात थी कि कष्ट उठाते हुए भी उनके चेहरों पर मुस्कान बरकरार थी, भीड़-भाड़ में भी उनके चेहरे खिल रहे थे। एक ने दूसरे से सटकर पूछा- "क्यों तुम्हारा क्या कसूर था? "

"वही, जो तुम्हारा था"- उत्तर देकर दूसरे ने कहा- " सुनो, ज़रा ये तो बताओ, तुम कौन से ख़ानदान से हो ?"

"अबे, ये क्यों पूछ रहा है? जो लिखा है सो होके रहेगा। कोई कहीं भी ले जाये, होना सबका वही है, जो होता आया है।"

"तुम्हारे कहनेे का मतलब क्या है, समझा नहीं ?"

"जो जैसे ख़ानदान का है, उसे वैसी ही मंज़िल और मुकाम दिया जाता है यहाँ, वैसा ही मोल मिलता है उसे ?"

"तो मतलब मैं यहीं पड़ा रह जाऊँगा और तुम सब कहीं चल दोगे"- दूसरे वाले ने सिसकते हुए कहा।

" ग़म मत कर , हम सब की कुछ घंटों की ही ज़िन्दगी बची है , रोते को कोई नहीं पूछता, मिलकर थोड़ा सा मुस्कराते रहो, ताकि सही मुकाम मिल सके, हो सके तो तुम हमारे संग हो लेना"- इतना सुनकर पहले वाला गुलाबी वालों में घुस गया और दूसरे की बात फिर ध्यान से सुनने लगा।

"अब देख, कोई हमें मंदिर ले जायेगा, तो कोई दरगाह पर, कोई मंच की शोभा बढ़ायेगा , तो कोई किसी का सम्मान करेगा, सबका मतलब सटने के बाद हम या तो विसर्जित कर दिए जाएँगे या रौंदे जाएंगे। गलकर-सूखकर तो मरना ही है न , इसमें नस्ल और ख़ानदान का सवाल ही नहीं है।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 17, 2019 at 5:39am

कृपया //लघु कथा// को //लघुकथा// पढ़िएगा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 7:25am
मेरी इस लघुकथा पर समय दे कर हौसला अफजाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय पाठकगण।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2017 at 11:22pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी आदरणीय पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:46pm
सकारात्मक प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 14, 2015 at 8:28pm

बात फूलों की है  पर बड़ी सांकेतिक . कथा अच्छी बन पडी है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर'  जी  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।सादर "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"धन्यवाद आ. संजय जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन जी और कई तरह से बरता जाता है .. जैसे हैं और भी दुनिया में सुखनवर…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। अमीर जी का "पहली फ़ुर्सत" वाला सुझाव…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी नमसकार बहुत ही ख़ूब हुई आपकी ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिये गिरह भी ख़ूब सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्षमण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों ने बेहतर इस्लाह की है, ग़ज़ल…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"कृपया देखियेगा सादर जान फँसती है जब भी आफ़त में सर झुकाते हैं सब इबादत में 1 और किसका सहारा होता है…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया रचना जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका, गुणीजनों की सलाह से ग़ज़ल सुधार करती हूँ सादर"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सुझाव बेहतर हैं सुधार करती हूँ सादर"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत मुआफ़ी चाहती हूँ आगे से ख़याल रखूँगी, सच है आपने बहुत बार बताया है, इतनी…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए, 8th शेर हटा देती हूँ सादर"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service