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"महकती रोती दुनिया" - [लघु कथा - 15]

"महकती रोती दुनिया" - [लघु कथा]

"बड़े ग़ज़ब की बात थी कि कष्ट उठाते हुए भी उनके चेहरों पर मुस्कान बरकरार थी, भीड़-भाड़ में भी उनके चेहरे खिल रहे थे। एक ने दूसरे से सटकर पूछा- "क्यों तुम्हारा क्या कसूर था? "

"वही, जो तुम्हारा था"- उत्तर देकर दूसरे ने कहा- " सुनो, ज़रा ये तो बताओ, तुम कौन से ख़ानदान से हो ?"

"अबे, ये क्यों पूछ रहा है? जो लिखा है सो होके रहेगा। कोई कहीं भी ले जाये, होना सबका वही है, जो होता आया है।"

"तुम्हारे कहनेे का मतलब क्या है, समझा नहीं ?"

"जो जैसे ख़ानदान का है, उसे वैसी ही मंज़िल और मुकाम दिया जाता है यहाँ, वैसा ही मोल मिलता है उसे ?"

"तो मतलब मैं यहीं पड़ा रह जाऊँगा और तुम सब कहीं चल दोगे"- दूसरे वाले ने सिसकते हुए कहा।

" ग़म मत कर , हम सब की कुछ घंटों की ही ज़िन्दगी बची है , रोते को कोई नहीं पूछता, मिलकर थोड़ा सा मुस्कराते रहो, ताकि सही मुकाम मिल सके, हो सके तो तुम हमारे संग हो लेना"- इतना सुनकर पहले वाला गुलाबी वालों में घुस गया और दूसरे की बात फिर ध्यान से सुनने लगा।

"अब देख, कोई हमें मंदिर ले जायेगा, तो कोई दरगाह पर, कोई मंच की शोभा बढ़ायेगा , तो कोई किसी का सम्मान करेगा, सबका मतलब सटने के बाद हम या तो विसर्जित कर दिए जाएँगे या रौंदे जाएंगे। गलकर-सूखकर तो मरना ही है न , इसमें नस्ल और ख़ानदान का सवाल ही नहीं है।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 17, 2019 at 5:39am

कृपया //लघु कथा// को //लघुकथा// पढ़िएगा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 7:25am
मेरी इस लघुकथा पर समय दे कर हौसला अफजाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय पाठकगण।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2017 at 11:22pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी आदरणीय पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:46pm
सकारात्मक प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 14, 2015 at 8:28pm

बात फूलों की है  पर बड़ी सांकेतिक . कथा अच्छी बन पडी है .

कृपया ध्यान दे...

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