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कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे

कब सुख से सूखे लोचन पर करुणा  के घन लाओगे

 

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

कब तक आलंबन पाओगे

व्योम प्रवृत्त विमानों का

कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे

 

नश्वर देह सुरक्षित कितना

रक्षक के समुदायों से

दंभ भरा अस्तित्व बचेगा

कब तक कठिन उपायों से

मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे

 

झूठा नाटक कब तक मरने

वालों पर सविनय  होगा

कब तक अधरों के फूलों से

मातम का अभिनय होगा

कब तक शव –पर्वत पर चढ़कर तुम परचम  लहराओगे

 

बंद कर सकोगे कब तक तुम

मुख निर्मम सच्चाई का

छिपा सकेगा छद्म आचरण

कब तक कृत्य कसाई का

भारत के माथे पर कब तक काला तिलक लगाओगे

 

वमन करेगा कब अंतर्मन

युग-युग की संचित हाला

कब प्रकाश का पुंज धंसेगा

अंतस में बनकर ज्वाला

कब अपने अन्तर्यामी को जयमाला पहनाओगे 

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

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Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 10:39am
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत बढ़िया लगे आपके कुकभ छन्द,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 1, 2016 at 7:53am
सुख से सूखे लोचन पर करुणा बहुत सुंदर बिम्ब, हार्दिक बधाई आपको।
Comment by कंवर करतार on September 30, 2016 at 10:02pm

अति सुन्दर बन्धुवर,सादर बधाई I

Comment by amita tiwari on September 30, 2016 at 8:41pm

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

बहुत ही सटीक !    वाह !

 

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