‘बेटा जो नयी वैकेंसी निकली थी, तुमने फार्म डाल दिया ?’- पिता के चेहरे पर खुशी थी . उनके हाथ में एक मोबाईल था .
‘नहीं पापा, मैं कोई फॉर्म नहीं डालूँगा . आपके कहने पर पहले कितने फार्म भर चुका हूँ , कितने इक्जाम दिए, पर कोई नतीजा निकला ?’
‘बेटा तकदीर को कोई नहीं जानता --------?’
‘बेकार की बाते हैं पापा, नौकरी किस्मत से नहीं योग्यता से मिलती है एक्स्ट्रा आर्डिनरी बच्चों को नौकरी की कमी नहीं , पर जो बच्चे सामान्य हैं वे क्या करें, सरकार के पास उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है, उन्हें या तो मंत्री और विधायकों के जुगाड़ से नौकरी मिलती है या रिश्वत देने से, वह भी थोड़ी नहीं लाखों मे .वे भी किस्मत वाले हैं जिनके बाप नौकरी में रहते मर जाते है कम से कम उनके औलादों को नौकरी तो मिल जाती है . मेरी किस्मत में तो वह भी नहीं . यही मन करता है मैं ही अपनी जान दे दूं . आपने ईमानदारी से नौकरी की, क्या पाया ? खुद तो मोहताज रहे ही, सारे घर को भूखा-नंगा रखा . आप तो इस लायक भी नहीं कि मेरी नौकरी के लिये रिश्वत का इन्तेजाम कर सकें. ऐसे नाकारा बाप की औलाद होकर मैं अकेला क्या तीर मार सकता हूँ .
‘तू सच कहता है, बेटा .’ – पिता की आवाज भराई हुई थी. मोबाईल उनके हाथ से छूट गया . वह वापस हो लिए . जाते –जाते उनके मुख से इतना ही निकला –‘तुम्हारे मोबाईल पर एक मैसेज है पढ़ लेना’
बेटे ने अनमने मन से मोबाईल उठाया . मानीटर पर एक सन्देश था – ‘वी आर प्लीज्ड टू इन्फॉर्म यू दैट यू हैव बीन सिलेक्टेड --------‘
(मौलिक /अप्रल्काषित )
Comment
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब सादर, बहुत सुंदर लघुकथा है. नौकरियों में बढती प्रतियोगिता और तिस पर रिश्वत ने मध्यम वर्ग के सामान्य श्रेणी के बच्चों को कितनी निराशाजनक स्थिति में ला दिया है यह आपकी लघुकथा पूरे प्रभाव के साथ बखूबी बता रही है. सादर.
दिल को छूती रचना.....आदरणीय ..बहुत बहुत बधाई | सादर
बहुत सुन्दर लघुकथा रची आपने आदरणीय ..बहुत बहुत बधाई | सादर
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