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शादी की दावत-2

द्वार पर चुनमुनिया थी |

“भईया आप लोग बारात नहीं चलेंगे |उहाँ सब लोग तैयार हो गए हैं |बैंड-बाजा वाले भी आ गए हैं |सभी औरत लोग लावा लेने जा रही हैं |”

कितना बोलती है तू !क्या तू भी बारात चेलेगी ?मैंने कहा

“और क्या ?उहाँ चलकर फुलकी ,रसगुल्ला ,टिकिया खाने वाला भी तो चाहिए ना |”

“अच्छा तू चल ,हम लोग नया कपड़ा पहनकर आते हैं |”महेश भईया बोले

उसके मुड़ते ही महेश भईया ने कहा - “चलों जवानों ,कूच करते हैं |”

“मैं विद्रोह पर हूँ !शादी में बुलाकर भूखा रखने वाले मौसा के ख़िलाफ़ विद्रोह - - “मैगजीन को मोड़ कर बनाए गए  भोपू से संतोष घोषणा करता है |

“मतलब - - तुम बारात में नहीं जा रहे !”

“मतलब कि मैं बारात के लिए लाए नए कपड़े नहीं पहनूँगा |”

“देख ले मलिक्ष ,बदबू मारेगा तो कोई साली पास नहीं आएगी |हम भी बोल देंगे कि प्रजा(नौकर )है |” सतीश ने ठहाका मारा |

पर उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और हम सब तैयार होकर बस में जा बैठे |

लड़की के द्वार पर पहुँचने से पहले बैंड पर नाच शुरु हो गया |परिचितों ने हमें भी अंदर खीँच लिया |पर संतोष बार-बार बुलाने पर भी नहीं गया |बल्कि बिगड़ कर कुछ और दूर खड़ा हो गया |

द्वार पूजा के स्वागत पर बरातियों के लिए छेना और लड्डू का प्रबंध था |

जब संतोष को एक प्लेट पकड़ाई गई तो वो बोला –“भईया नागपुर से तुम लोगों की मिठाई खाने आ रहे हैं और तुम हो कि एक में ही निपटा रहे हो |”

उस लड़के ने झल्लाते हुए चार प्लेट संतोष के सामने रख दी और संतोष बेहयाई से स्वाद ले लेकर छेना-लड्डू  खाता रहा |इसके बाद वो सॉफ्ट-ड्रिंक पर टूट पड़ा |

जब खाने के टैंट में पहुँचे तो संतोष ने प्लेट को पनीर ,हलवे और ढेर सारी पूड़ियों से भर लिया और मज़े से खाने लगा |एक नहीं,दो नहीं,तीन बार उसने प्लेट ठसाठस भरी और पूरी साफ़ कर गया |

“क्या संतोष इतना ही खाता है !”महेश भईया ने हैरानी से पूछा |

“आज ही - - - - -“ सतीश ने हैरानी से जवाब दिया |

“दिन भर भूखा मार डाले, साSले,अब सबक सिखाएँगे |”वो खाते हुए बड़बड़ा रहा था |

“संतोष तुम ठीक तो हो ?”महेश ने पूछा

“मैंने भांग - - - -सीS ई “बताना मत किसी को

जब तक खाना चलता रहा वो कुछ ना कुछ अंदर ठुस्ता रहा |बाद में वो बारतियों के लिए लगाए गए बिछावन पर जाकर सो गया |

सुबह विदाई से पहले भी बरातियों के लिए नाश्ते की व्यवस्था थी |संतोष ने पहले गटागट चार-पाँच कप चाय गले के नीचे उतारी और फिर हम सभी की प्लेटों का छेना भी सुड़क लिया |

“यार मीठा बहुत अच्छा लग रहा है |”वो मुस्कुराते हुए बोला |

उसके इस व्यवहार पर हमे हँसी भी आ रही थी और शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी |पर उस समय हमें केवल स्थिति को नियंत्रित रखना था |

घर पहुँच कर हम सभी बिस्तर पर निढाल हो गए |12 बजे के आसपास चुनमुनिया चिप्स और चाय दे गई |

अपनी चाय गटक कर संतोष बोला-“थोड़ी चाय और दो - -  -“

हमनें फटाफट चाय गले के नीचे उतार ली |लगभग एक घंटे बाद

“पेट बहुत मरोड़े मार रहा है |कोई निबटने चलेगा ?”संतोष बोला

“चलों ,तलैया वाले बाग में सभी निबट आते हैं “महेश बोला |

ताल रोहू,सिंघी,मंगूर और कई देशी मछलियों और जल जीवों से भर था |शरद ऋतू होने के कारण साइबेरियन पक्षियों का वहाँ बड़ी मात्रा में प्रवास होता था तथा प्रतिबंध के बावजूद लोग इन पक्षियों का शिकार करते थे |

“इनका माँस बहुत लज़ीज़ होता है |” चमकती आँखों से उनको देखते हुए महेश बोला |

फारिग होकर हम सब घर पहुँचे तो वहाँ बड़े बाऊजी पहले से मौजूद थे |

 “सुनों महेश,आज शाम को तुम सभी लोगों के लिए दिलीप के यहाँ देशी मुर्गा बनवा रहे हैं |शाम को तुम लोग वहीं पहुँच जाना |”

बाऊजी के जाने के बाद सतीश बोला –“देर से आए दुरुस्त आए |लगता हैं संतोष का तमाशा काम कर गया |”

“मेरे पेट में तो मरोड़ हो रहा है |क्या कोई फिर बाग़ चलेगा ?” संतोष ने पूछा

“मैं चल रहा हूँ |”हाथ में एक गुलेल लिए महेश बोला |

जब वे लौटे तो मेहश के हाथ में एक साइबेरियन चिड़िया थी |

“आज इस चिड़िया में तरी लगाकर खिलाएँगे |मुर्गा-उरगा सब फेल है इसके आगे - - -“

“मैं नहीं खाने वाला ये सब |मेरे पेट में तो अभी भी दर्द है |वैसे भी शाम को मुर्गा खाना है |तब तक पेट भी सोन्हा जाएगा  - -“संतोष बोला

“मैं भी ये जंगली चीज़े नहीं खा सकता |”सतीश नाक सिकोड़ते हुए बोला

चिड़िया पकते-पकते चार बज गए |सच में चिड़िया का गोश्त बेहद लज़ीज़ और स्वादिष्ट था |पर सतीश और संतोष को नहीं खाना था सो वो नहीं खाए |उनके दिमाग में शायद देशी मुर्गे की बोटियाँ थीं |

शाम को जब चुनमुनिया चाय लेकर आई तो उसने खाने के बारे में पूछा तो सतीश ने उसे दावत की बात कह दी |

आठ बज गए और हमें भूख महसूस होने लगी |पर संतोष और सतीश भूख से बेहाल थे |हम सभी लोग बातों से मन बहलाने लगे और रह-रहकर घड़ी देखते |नौ बजते ही महेश हम लोगों को दिलीप के घर की तरफ ले चला |पर जैसे ही हम दिलीप के घर पहुँचे |वहाँ का माहौल देखकर हमे साँप सूंघ गया |घर में सन्नाटा पसरा था |डिबरी बुझा दी गई थी |लोग सोने चले गए थे |

“भईया आप लोग !ईधर ?”टार्च की रोशनी में हमे पहचानते हुए दिलीप बोला

“कुछ नहीं बस थोड़ा ठहलने निकले थे |”स्थिति की नजाकत को सम्भालते हुए महेश बोला

“खाना-पीना हो गया न ! बाउजी सुबह कहे थे कि तुम्हारे यहाँ सभी लड़को के मुर्गा का कार्यक्रम रहेगा |औरत लोग तो आप लोगों के लिए रोटी-भात भी बना ली थीं |अभी थोड़ी देर पहले ही हम घास-पात यानि की दाल-साग खाएँ  हैं जो औरत लोग अपने लिए बनाई थीं |”हमारी तरफ गौर से देखता हुआ वो बोला

“हमारी थोड़ी तबीयत ठीक नहीं थी |कल शादी में खाना-पीना थोड़ा गड़बड़ कर गया था |इसलिए हम ही लोग बाबूजी से कह दिए की सादा खाएँगे |”महेश ने कहा|

संतोष की सूरत उस समय देखने लायक थी पर ना जाने क्यों वो चुप्प रहा |

 

हम सभी लोग घर पर पहुँचे तो गाँव का एक लड़का वहाँ खड़ा मिला और बोला –“भईया,बाग वाले दादा ये मुर्गा पठाए हैं | “

हमनें देखा तो झिल्ली में कच्चा मुर्गा था |

“ फैंक साला को - - - -“कहते हुए संतोष ने झिल्ली छीनी और दूर उठाकर फैंक दी |गाँव के कुत्ते लड़ते-झगड़ते हुए गोश्त पर टूट पड़े |

थोड़ी देर मातम का माहौल बना रहा |कुछ देर बाद महेश भईया मोबाईल की टार्च जलाए और रसोईघर में डिब्बे तलाशने लगे |वो हाथ में एक डिब्बा लिए मुस्कुराते हुए लौटे |

“देखो ,चीनी मिल गई |”

पूरी चीनी को घोलकर भी इतना ही शरबत बना कि सब एक-एक गिलास पी सकें |पर महेश भईया ने अपना हिस्सा भी संतोष को दे दिया |

सुबह पौं फटने से पहले ही हम सभी घर से निकल लिए और सात बजे स्टेशन के होटल पर आकर चाय-नाश्ता किया और अपनी-अपनी ट्रेनों की प्रतीक्षा करने लगे |संतोष की ट्रेन सबसे पहले आई |

ट्रेन में बैठने से पहले वो भावुक होकर बोला –“संतोष भईया ये बारात और शरबत कभी नहीं भूलेंगे |”

 

संतोष भईया ने कहा –“ लौट के बुद्धू -  - - “

बात बीच में ही काटते हुए हम सब बोले – “ घर को जाए |”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 5, 2015 at 10:21pm

सोमेश जी

कहानी के निम्नांकित तत्वोमे उद्देश्य का विशेष महत्त्व है  i यदि कहानी उद्देश्यपूर्ण नहीं है और उससे कोई शिक्षा नहीं मिलती या समाज को कोई मैंसेज नहीं जाता तो उसका कोई अर्थ नहीं है  i जहा तक वर्णन की बात है  हम किसी प्लेटफार्म, बाजार, अस्पताल के दृश्य  का भी रोचक वर्णन कर सकते है पर वह कहानी  तो नही हुयी i कहानी के अनिवार्य तत्व  इस प्रकार है-

 कथावस्तु,  पात्र अथवा चरित्र-चित्रणकथोपकथन अथवा संवाद ,  देशकाल अथवा वातावरणभाषा-शैली  और उद्देश्य

Comment by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 9:51pm

सोमेश भाई ,आंचलिक शब्दों का खूबसूरत प्रयोग हुआ है ,बधाई आपको इस कहानी के लिए !

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 4, 2015 at 6:04pm

बहुत सुन्दर आदरणीय सोमेश कुमारजी ......अंत तक कहानी में रोचकता बनी रहती है और पाठक शादी की दावत में खो सा जाता है .

सादर बधाई स्वीकार करे.!

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2015 at 3:41pm
बहुत-बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए

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