अभिव्यक्तियाँ
किस्से कहानी कविताएँ
सब अभिव्यक्तियाँ जीवन की
कहाँ तक साधू अपेक्षायें
गुरुजन गुणीजन की ?
मन की बेकली है
लिखने का प्रथम उदेश्शय
हो जाऊ सफल जो मानकों
पर चलूँ /दूँ गहन संदेश |
बिन पथों से डिगे
होंगी कैसे राहे प्रशस्त
नव सृजन की ?
अलंकारों से छंदों को साधना
क्या संकुचित बस यहीं तक
साहित्य की आराधना
अर्थ क्या रह जाएगा
जो ना हो इनमें
जीवन-तत्व अवशिष्ट |
राहों से इत्तर चले हैं कई दृष्टा
नवज्योति जागृत कर कहलाए सृष्टा
क्या लाज़मी है ,सोचिए ,नवविधा को
कहना यूँ अपशिष्ट |
Comment
आदरणीय सोमेश भाई , सारा जीवन सीखते और सीखते , और सीखे हुये को अभिव्यक्त करने के प्रयास में बीत जाता है , फिर भी बहुत कुछ बचा ही रहता है , कहने के लिये । एक राह तू पकड चला चल , पा जायेगा मधुशाला । किसी एक विधा को पकड़िये जिसमे आप सबसे अधिक अभिव्यत कर सकते हैं । जब तक आप डायरी तक सीमित हैं किसी विधा की ज़रूरत नहीं है पर बाहर आयेंगे तो किसी न किसी विधा की ज़रूरत तो होगी ही । और यहाँ तो हर विधा के जानकार हैं , बस आपको तय करना है क्या सीखना चाहते हैं ।
सोमेश भाई, ऐसा लगता है अपने मन के भावों को उकेर दिया है आपने ,बधाई इस प्रस्तुति पर !
सुंदर लिखा , आदरणीय सोमेश भाई जी. निरंतरता का नाम ही जीवन है, जो सकारात्मक होना चाहिए.
गुरु तुम दीपक में तारा
तुम जलो हरो अँधियारा
मैं जलूँ जब हो अँधियारा |
गुरु जी तुम रस्ता में राही
तुमरे कारण मंजिल पाई |
प्रिय सोमेश
मेरे अनुज i कुंठित हो गए -
कहाँ तक साधू अपेक्षायें
गुरुजन गुणीजन की ? ------तपस्या में तपना तो पड़ता है i तुम्हारे लेखन में कितना सुधार आया है यह तुम्हे नहीं पता i इतनी जल्दी जल्दी कहानी मत लिखो i पहले प्लाट को अच्छी तरह मन में गढ़ लो फिर लिखो i कहानी समाज को कुछ देती है i इसका ध्यान रखो i तुम्हारी कहानियो से यह कविता कही अधिक अच्छी है i मैं हतोत्साहित नहीं करता i मैं मार्ग दर्शन कर रहा हूँ i सोचता हूँ एक कहानी मैं भी ब्लॉग में पोस्ट करूं i ईश्वरेच्छा i सस्नेह i
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