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सामने आ रे !

रात्रि-आकाश में अक्सर

तुम्हें निहारे

कहाँ छुपे हो प्रियम्वदा

होकर तारे ?

बचपन से कहते आए हैं

सब प्यारे

इस लोक से जाने वाले हो

जाते हैं तारे !

भीड़ भरे आकाश में नयन

खोज के हारें

शांतिप्रभा आर्त पुकार सुन लो

करो  इशारे |

टूटता विश्वास का पुंज देख के  

टूटते तारे

है व्याकुल हृदय की क्रन्दना

सामने आ रे !

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

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Comment by Shyam Mathpal on March 10, 2015 at 10:03am

Priya Somesh Ji,

Sundar Rachna ke liye badhai.

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 6:26pm

भीड़ भरे आकाश में नयन

खोज के हारें

शांतिप्रभा आर्त पुकार सुन लो

करो  इशारे |,,,,,,,बहुत सुन्दर आ.सोमेश भाई ,,बधाई स्वीकार करें | 

Comment by somesh kumar on March 9, 2015 at 9:09am

दर्द की घड़ी में साथ आए हो 

काँधे पे धरने को हाथ आए हो 

हौसला मिला तुम्हारे शब्दों से 

स्नेह से भरे जो जज्बात लाए हो 

स्नहे प्रेम व् उत्साहवर्धन के लिए सभी भाइयों और गुरुजन को साधुवाद 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 12:16am
बहुत खूब , आदरणीय सोमेश जी, सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 9:59pm

बहुत ख़ूब!भाई सोमेश!!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 12:01pm

टूटता विश्वास का पुंज देख के  

टूटते तारे

है व्याकुल हृदय की क्रन्दना

सामने आ रे ! बहुत सुन्दर सोमेश जी ,बधाई इस प्रस्तुति पर  ! सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 7, 2015 at 9:02pm

प्रिय सोमेश

अच्छा प्रयास है i भावपूर्ण i

कृपया ध्यान दे...

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