दस फागुनी दोहे " 2013 "
तेरी ही खातिर सजे रंग अबीर के थाल ,
तेरे आने से हुई मेरी होली लाल ।
रंग पर्व में घुल गए इंतज़ार के रंग ,
होली सच में शोभती अपनों के ही संग ।
सरसों टेसू और पलाश हैं बसंत के दूत ,
रंग रूप से कर रहे मादकता आहूत ।
लज्जा तेरा रंग है मेरा रंग संकोच ,
ऐसे में कैसे मने होली तू ही सोच ।
मुझको अब भी याद है वो होली वो फाग ,
तन पर रंग था प्रीत का मन में प्रीत की आग ।
माँ तेरे हाथों बनी गुझिया का वो स्वाद ,
लगता हरपाल साथ है तेरा आशीर्वाद ।
पिचकारी थी पांच की दस पैसे का रंग ,
दिनभर हम भी गाँव में करते थे हुडदंग ।
कहाँ पुलक उत्साह है कहाँ आपसी स्नेह ,
शहरों में हम ढो रहे अपनी छूछी देह ।
- अभिनव अरुण
{25032013}
Comment
दोहों के मर्म आप तक पहुँचने में सफल रहे ये मेरे लिए आशीष के समान है आदरणीय श्री आशीष त्रिवेदी जी आभार आपका !!
बहुत खूब अभिनव जी। होली के लगभग एक माह के बाद भी अबीर गुलाल की महक जेहन में बस गयी। सच है त्योहारों का उत्साह महज औपचारिकता बनता जा रहा है।
भाई अभिनव अरुणजी. ..
छंदोत्सव और काव्य महोत्सवों में इस छंद पर सबसे अधिक बातें होती हैं. इसी मंच के भारतीय छंद विधान समूह में दोहा शिल्प पर आलेख है.
सुधीजनों ने आपकी प्रस्तुत छंद-प्रस्तुति में वर्तमान शिल्पगत दोषों के प्रति आपको अगाह नहीं किया, यह देख कर मैं चकित भी हूँ. मेरे कहने को अन्यथा आप नहीं लेंगे यह आशा है, आशय समझियेगा.
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
सादर धन्यवाद
आदरणीया डॉ प्राची जी ! आपने जिन विन्दुओं की और ध्यान दिलाया , आभार आपका कृपया त्रुटी पूर्ण समस्त दोहे बता दें तो उन्हें एडिट कर दूं । मैं दोहा विधा को भली प्रकार नहीं जानता , स्वीकार है । आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
आदरणीय अरुण अभिनव जी,
बहुत समय बाद आपकी रचना ब्लॉग पर देख कर बहुत खुशी हुई...
बहुत सुन्दर होली के रंग बिखेरे हैं आपने इस दोहावली में... पर शिल्प और मात्राएं कई जगह आगे पीछे हो गयी हैं..
बेहद अदभुत है तो है....गुरु गुरु से अंत नहीं होता विषम चरण का
संस्कार के पाँव पर श्रद्धा का टीका ,
ये है तो सब है यहाँ वरना सब फीका ...सम चरण का अंत हमेशा गुरु लघु से करना होता है ..
सादर शुभकामनाएँ
श्री ब्रिजेश जी दोहे प्यारे लगे प्रयास सफल हुआ हार्दिक बधाई होली की और आभार आपक्पा !!
बहुत बहुत शुक्रिया राम शिरोमणि जी !!
श्री राजेश जी होली की हार्दिक बधाई सहित आभार आपका !!
हार्दिक आभार श्री केवल जी दोहे आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ !!
आदरणीय श्री अभिनव अरूण जी, जितने प्यारे दोहे उतनी ही प्यारी फोटो, बहुत बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकारें।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online