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जनाब निलेश "नूर" जी आदाब,कोई बात नहीं, मश्क़-ए-सुख़न के लिये बुज़ुर्गों ने ये तरीक़ा बताया था, उसी पर अमल कर रहा हूँ ।
ग़ज़ल आपको पसंद आई,लिखना सार्थक हुवा,दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।आपकी ज़हानत ने मुझे आपके बहुत क़रीब ला दिया है,ये मेरी ख़ुशनसीबी है कि ओबीओ पर मुझे आप जैसे साथी मिले ।
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