१
देखूँ इसको मै शरमाऊं
मन का सारा हाल सुनाऊ
सांझ सवेरे इसको अर्पण
का सखी साजन ?ना सखि दर्पण
२.
चूमे होंठ लाल कर जाए
मन में शीतलता भर जाए
उस पल रहे ना कोई भान
का सखि साजन ? ना सखि पान
3.
लम्बा है इतना जैसे ऊँट
पहना नहीं है कोई सूट
तन के खड़ा है जैसे बन्ना
का सखि साजन ?ना सखी गन्ना
---------पारुल'पंखुरी'
(मौलिक औए अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया पारुल जी , बहुत ही सुंदर मनभावक कह-मुकरियां
लम्बा है इतना जैसे ऊँट
पहना नहीं है कोई सूट
तन के खड़ा है जैसे बन्ना
का सखि साजन ?ना सखी गन्ना .............यह तो बहुत पसंद आई
आ0 पारूल जी, कहमुकरियां...अच्छी लगी । बधाई स्वीकारें ।
आदरणीय नरेन्द्र जी ,नीरज जी , एवं गोपाल जी आप सही का दिल से आभार आपको मेरा ये प्रयास पसंद आया इससे मुझे और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिल रही है धन्यवाद !
बहुत ही सुंदर , मजेदार मुकरियाँ । हार्दिक बधाई ।
पारुल जी
बहुत ही सार्थक प्रयास i सभी मुकरिया प्रभावित करती है i
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