For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 5

कैकसी तीन साल के रावण को लेकर आई हुई थी। साल भर का कुंभकर्ण भी उसकी गोद में था। विवाह के बाद पहली बार वह आई थी। ऐसा नहीं था कि इस बीच उसका इन सबसे कोई सम्पर्क नहीं रहा था। सौभाग्य से विश्रवा का आश्रम सुमाली के ठिकाने से एक प्रहर की दूरी पर समुद्र में एक छोटे से टापू पर था। प्रत्येक दो-तीन माह के अन्तराल पर प्रहस्त आदि में से कोई भी भाई नाव लेकर जाता था और उससे मिल आता था। सुमाली कभी भी मिलने नहीं गया था, उसे डर था कि कहीं विश्रवा उसे पहचान न लें। कैकसी भी मुनि के साथ व्यवहार में पूर्ण सावधानी रखती थी कि उन्हें उससे किसी भी प्रकार की शिकायत न होने पाये। वह जानती थी कि यदि किसी दिन मुनिवर ने ध्यान की अवस्था में उसके विषय में जानने का प्रयास कर लिया तो वे सब जान जायेंगे। यूँ वे विरक्त सन्यासी थे। उनके मन में ईश्वर के अतिरिक्त किसी को भी जानने की लालसा नहीं थी। सिलसिला बढ़िया चल रहा था और उसे आशा थी बढ़िया ही चलता रहेगा।

प्रहस्त के नाव किनारे पर लगाते ही उसने देख लिया कि पूरा कुल किनारे पर उनकी प्रतीक्षा कर रहा है।

उनके उतरते ही पिता ने उसे बाहों में भर लिया। रावण और कुंभकर्ण को गोद में लेने के लिये उनके सारे मामा-मामी आपस में झगड़ने लगे। विजय मामाओं की हुई। मामियाँ धीरे से उसकी ओर खिसक आईं और जो बातचीत का सिलसिला आरंभ हुआ तो पता ही नहीं चला कि कब सूरज ढल गया।

रात्रि में भोजनोपरांत उसे पिता के साथ बैठ कर शान्ति से बतियाने का अवसर मिल पाया। भाई लोग घूमने निकल गये थे, भाभियाँ घर के कामों में व्यस्त थीं और बच्चे रावण व कुंभकर्ण को घेरे उनके साथ खेल रहे थे।
‘‘और सुना बेटी, आनन्द तो है मुनिवर के आश्रम में ?’’
‘‘हाँ ! मुझे छोड़ कर शेष सभी आनन्द से हैं।’’
‘‘तेरे साथ मैंने अन्याय किया है न ?’’
‘‘नहीं पिताजी ऐसा नहीं सोचती मैं। हम सब के पुनः उत्थान के लिये यह तो आवश्यक था। पर क्या करूँ वहाँ की व्यवस्था में मुझे आनन्द नहीं मिल पाता, बस कर्तव्य की दृष्टि से सब निभाये जा रही हूँ।’’
‘‘आनन्द तो मिल भी नहीं पायेगा। तेरा बचपन ऐश्वर्य में बीता फिर बुरे दिनों में भी इतने भरे-पूरे परिवार के साथ रही। दिन भर शोर-शराबा, चक-चक चक-चक। वहाँ आश्रम का शांत वातावरण, निरंतर यज्ञ और ध्यान, मन तो भटकता ही होगा तेरा।’’
‘‘अब जो है सो है। यही संतोष है कि इसी में से पुनः ऐश्वर्य का मार्ग निकलेगा।’’
‘‘सही कहा। अच्छा हाँ ! रावण को यहीं छोड़ जाना।’’
‘‘क्या ?’’ कैकसी चैंक पड़ी - ‘‘अभी तो बहुत छोटा है।’’
‘‘यही तो समय होता है बच्चे के मन की भूमि पर पौध रोपने का। वहाँ रहा तो आर्य संस्कार उसके मन में घर कर लेंगे, वह भी आर्य हो जायेगा। मैं नहीं चाहता वह आर्य बने। मैं नहीं चाहता वह रक्ष संस्कृति से घृणा करे।’’
‘‘समझ गयी मैं आपकी बात। ऐसा ही होगा। मुनिवर को बता दूँगी कि यहाँ दो-दो छोटे बच्चों को सम्हालने में असुविधा होती थी इसलिये नाना-नानी के पास छोड़ दिया।’’
‘‘हाँ ! इसे ही तो रक्ष संस्कृति का उद्धारक बनना है।’’

इसी बीच कैकसी की भाभियों की ओर से बुलावा आ गया कि क्या हमें कुछ भी समय नहीं देंगी जीजी ? कैकसी हँसती हुई भाभियों की मण्डली में चली गई। सुमाली की आँखों में पिछली घटनायें पुनः सजीव होकर घूमने लगीं।

करीब 15 वर्ष पूर्व वे लोग विष्णु से पराजित होकर स्वर्ग से भागे थे। विष्णु के सैन्य ने उनका बहुत दूर तक पीछा किया था। इन्हें भय था कि वह अवश्य लंका पर आक्रमण करेगा अतः लंका पहुँचते ही इन लोगों ने अपने परिवारों को और जो कुछ भी समेट सके उतने सामान को समेटा था और चारों ओर तितर बितर हो गये थे।

माल्यवान को इस सबसे बड़ा धक्का लगा था। उसे वैराग्य हो गया था। उसने पूर्व की ओर एक द्वीप पर जाकर एक आश्रम बना लिया था और ईश्वर की आराधना में लग गया था।

सुमाली बाकी सारे कुनबे को नावों में भरकर दक्षिण की ओर निकल गया था - अनजाने संसार में। अपनी लंका को, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से आबाद किया था, वे अनाथ छोड़कर जा रहे थे, शायद सदैव के लिये। उसने आँसुओं से धुँधलाई आँखों से धीरे-धीरे दूर होती जा रही लंका को देखा था और फिर झटके से घूम कर बैठ गया था। पूरी रात, पूरे दिन यात्रा करने के बाद भूमि के दर्शन हुये थे। यह एक निर्जन क्षेत्र था, दूर-दूर तक उन्हें कोई नहीं दिखाई देता था। यह कौन सा स्थान था उन्हें नहीं पता था। वे तो यही समझते आये थे कि लंका के दक्षिण में मात्र जल ही जल है। लंका की तरह यहाँ भी नारियल के वृक्षों की भरमार थी, उन्होंने ढेर सारे नारियल तोड़ कर उसीसे अपनी प्यास मिटाई थी। भोजन की तो थोड़ी बहुत व्यवस्था थी नावों में उनके पास पर पीने के लिये जल नहीं था। पूरी रात और पूरे दिन उन्हें प्यासा ही रहना पड़ा था। फिर उन्होंने थोड़ी सी भूमि खेती के लायक बनाई और अपना पेट पालने लगे। वे इतने समर्थ तो थे ही कि पुनः कोई राज्य बसा सकते थे किंतु विष्णु का भय उनके मन में समाया हुआ था। उनका पता चलते ही कहीं विष्णु पुनः उन पर आक्रमण न कर दे। अब तो बस परिवार भर ही बचा था। सारी सेना, सारे संसाधन समाप्त हो चुके थे इसलिये अज्ञात बने रहने में ही भलाई थी।

कुछ समय में जब वे सुस्थिर हुये तो उसने पुनः ब्रह्मा का ही सहारा लेने की सोची थी।

यह तो निश्चित था कि अब विष्णु के विरुद्ध ब्रह्मा उनके सहयोग में नहीं खड़े होंगे। त्रिदेवों की यही सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे एक-दूसरे के खिलाफ कभी नहीं जाते थे। एक-दूसरे के मान के लिये कुछ भी कर सकते थे।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे ब्रह्मा से संबंध जोड़ा जाय।

अचानक एक दिन उसे जानकारी हुई कि ब्रह्मा ने अपने प्रपौत्र कुबेर को लोकपाल बनाकर लंका सौंप दी है। उसके हृदय में शूल ऐसा चुभा पर उसे एक राह भी दिखाई दे गई।

उसने यौवन के द्वार पर दस्तक देती अपनी अत्यंत रूपवती-गुणवती कन्या कैकसी को कुबेर के पिता यानी ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महर्षि विश्रवा के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया। वह उसे सब कुछ समझा कर उनके आश्रम के करीब छोड़ आया था। क्या पता उसे देख कर विश्रवा पहचान लें और सूचना विष्णु तक पहुँच जाये।

विश्रवा की पत्नी महर्षि भरद्वाज की पुत्री देववर्णिनी अब कुबेर के साथ लंका आ गयी थीं। इसलिये यदि कैकसी थोड़ा विवेक से काम लेती तो काम बन सकता था। कैकसी की तुलना में ऋषिवर की आयु काफी अधिक थी पर उद्धार का और कोई मार्ग भी तो नहीं दिख रहा था।

कैकसी ने उसे निराश नहीं किया। उसने विश्रवा की मन से सेवा की और अन्त में उनकी पत्नी का पद प्राप्त कर ही लिया।

क्रमशः ...................

मौलिक एवं अप्रकाशित
..................................................................... सुलभ अग्निहोत्री

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on June 24, 2016 at 9:16am

आभार आदरणीया !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2016 at 12:05pm

वाह्ह्ह्ह  सभी श्रंखलायें ज्ञानवर्धक रोचक भी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service