For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 6 (1)

‘‘महामात्य ! यह मैं क्या सुन रही हूँ ?’’ कैकेयी के स्वर में असंतोष झलक रहा था।
कैकेयी को विवाह होकर अयोध्या आये हुये 8 बरस बीत गये थे। अब वह सत्रह वर्षीय किशोरी से एक परिपक्व साम्राज्ञी में परिवर्तित हो गयी थी। समय के साथ-साथ दशरथ के हृदय और अयोध्या के प्रशासन पर भी उसकी पकड़ सुदृढ़ होती गयी थी। उसे समाज और राजनीति की गुत्थियाँ सुलझाने में आनन्द आने लगा था। इस समय वह अपने प्रासाद में अयोध्या के महामात्य जाबालि के साथ बैठी हुई थी।
‘‘क्या महारानी जी ? मैं समझ नहीं पाया।’’ आमात्य जाबालि सच में नहीं समझ पाये थे।
‘‘आप राज्य की व्यवस्था के साथ-साथ धर्म की व्यवस्थाओं में भी दखल देने लग गये हैं।’’
‘‘संभवतः किसी मठ के महन्त ने कुछ शिकायत की होगी।’’
‘‘शिकायत यदि झूठी है तो साबित करें।’’
‘‘वह तो तब होगा जब पूरी शिकायत आप मुझे बतायेंगी।’’
‘‘मुझे किसी एक मठ से मतलब नहीं है। मेरा प्रश्न तो यह है कि क्या आप धर्म के मसलों में भी दखल देने लगे हैं ?’’
‘‘नहीं महारानी जी ! मैं मात्र उन्हें अपने कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने देता। यदि वे प्रशासनिक कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप करेंगे तो मुझे उन पर लगाम कसनी ही पड़ेगी।’’
‘‘कैसा हस्तक्षेप और कैसी लगाम ? स्पष्ट कहिये।’’
‘‘यदि कोई महंत किसी गरीब पर धर्म के नाम पर अत्याचार करेगा, न्याय में हस्तक्षेप करेगा तो मैं उस महंत के अधिकारों पर लगाम लगा कर रहूँगा। मैं अन्याय को प्रश्रय नहीं दे सकता और इस कार्य से मुझे कोई नहीं रोक सकता, स्वयं महाराज भी नहीं।’’
‘‘आमात्य ! दंभ का स्वर सुनाई दे रहा है मुझे।’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है महारानी।’’ जाबालि बरबस मुस्कुरा उठे - ‘‘यदि महारानी को ऐसा लगता है तो यह उनका भ्रम मात्र है।’’
‘‘आपको महारानी से इस तरह बात करते भय नहीं लगता।’’
‘‘भय क्यों लगेगा महारानी ? आमात्य का कर्तव्य है उचित सलाह देना। राजा को उचित मार्ग पर चलने के लिये पे्ररित करना ताकि प्रजा सुखी और संतुष्ट रह सके। राज्य समृद्ध और स्थाई रह सके।’’
कैकेयी ने ताली बजायी। तुरंत एक सेवक उपस्थित हुआ।
‘‘जाओ बगल के कक्ष में बड़े मठ के महन्त जी बैठे हैं। उन्हें आदर से बुला लाओ।’’ कैकेयी ने उसे आदेश दिया।
महन्त जी आ गये। उनके साथ दो व्यक्ति और भी थे। एक तो अपने बहुमूल्य कपड़ों से कोई धनी वणिक लग रहा था और दूसरा साधारण पुराने से कपड़ों में संभवतः कोई शूद्र था। जाबालि और कैकेयी दोनों ने उठ कर महन्त जी का स्वागत किया, प्रणाम किया। महन्त जी जब बैठ गये तो कैकेयी ने कहा -
‘‘हाँ महन्त जी अब बताइये क्या शिकायत है ? महामात्य भी उपस्थित हैं आपका समाधान करने के लिये।’’
‘‘महारानी जी ! इस व्यक्ति ने...’’ उन्होंने उस पुराने से कपड़े पहने व्यक्ति की ओर इंगित करते हुये कहा ‘‘इस वणिक को अपना घर बेचा था, अपनी इच्छा से। इसके पुत्र ने महामात्य के पास शिकायत कर दी तो उन्होंने वह विक्रय-पत्र निरस्त कर घर उस पुत्र को दिलवा दिया। इस उचित विक्रय में हस्तक्षेप का इनको क्या अधिकार था ?’’
‘‘पहली बात महंत जी, आपका इस समूचे प्रकरण से कोई संबंध नहीं है। शिकायत लेकर आना था तो यह वणिक महोदय आ सकते थे। थोड़ी देर में आप स्वयं समझ जायेंगे कि आपने यहाँ आकर कितनी बड़ी भूल कर दी है। दूसरी यह शिकायत लेकर आप दरबार में महाराज के पास क्यों नहीं आये ? आपको वहीं आना चाहिये था। यह ठीक है कि महाराज महारानी की सलाह का सम्मान करते हैं किंतु उचित प्रक्रिया का पालन किया ही जाना चाहिये। कैसा भी आदेश, चाहे वह आपके पक्ष में हो या विपक्ष में, महाराज ही देंगे, महारानी नहीं।’’
‘‘महामात्य आप मुझे चुनौती दे रहे हैं।’’ कैकेयी के स्वर में क्रोध और आश्चर्य दोनों ही थे।
‘‘नहीं महारानी ! मैं आपको चुनौती नहीं दे रहा। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि महाराज आपकी सलाह का सम्मान करते हैं। इस मामले में भी करेंगे। यदि आप महाराज को महंत जी के पक्ष में फैसला देने की सलाह देंगी तो वे वही करेंगे।’’
‘‘फिर ? फिर यदि ये मेरे पास आ गये तो आपको कष्ट क्यों हुआ ?’’
‘‘मुझे कष्ट नहीं हुआ महारानी ! प्रश्न प्रक्रिया का है। समस्त अभिलेख अभिलेखागार में होते हैं। सभा कक्ष में बैठे महाराज उन्हें तुरन्त मँगवाकर उनका निरीक्षण कर सकते हैं जो कि यहाँ इस समय संभव नहीं है।’’
‘‘हूँ !!!’’
‘‘तथ्य यह है कि इस प्रकार ये महंत महोदय स्वयं को राज्य व्यवस्था से ऊपर साबित करना चाहते हैं। सभाकक्ष में आना इन्हें अपनी हेठी प्रतीत होती है। इन्होंने इस बात को अनदेखा कर दिया है कि आदेश पत्र पर मुद्रिका तो महाराज की ही लगेगी और महाराज की आज्ञा से ही लगेगी।
‘‘ठीक है। अब ये यहाँ आ ही गये हैं तो इनकी समस्या का निदान कीजिये।’’
‘‘नहीं हो सकता महारानी।’’
‘‘आप मुझे न कह रहे हैं महामात्य।’’
‘‘नहीं महारानी ! मैं इन्हें न कह रहा हूँ।’’
‘‘बात तो एक ही है।’’
‘‘नहीं ! आपने अभी एक ही पक्ष सुना है। क्या आप कोई भी आदेश दोनों पक्षों को सुने बिना, पूरी बात जाने बिना दे सकती हैं ?’’
‘‘नहीं ! पर क्या इन्हांेने मुझे गलत बताया है ?’’
‘‘जितना बताया है उतना तो सच ही बताया है। किंतु आधा सच ही बताया है। उस व्यक्ति ने ऐसा क्यों किया यह तो बताया ही नहीं। कैसे किया यह तो बताया ही नहीं।’’
‘‘तो आप ही बता दीजिये।’’
‘‘उचित तो यही होगा महारानी जी कि पूरा सच उस व्यक्ति का पुत्र ही बताये।’’
‘‘महारानी जी ! यह वह व्यक्ति है जिसने घर विक्रय किया था। आप इसीसे सारी बात पूछ लीजिये। इसका पुत्र कौन होता है बीच में टांग अड़ाने वाला।’’ महंत जी ने अपने साथ आये उस कृषकाय व्यक्ति की ओर संकेत किया जो एक ओर हाथ जोड़े खड़ा था।
‘‘महारानी जी यद्यपि दूसरा पक्ष यह नहीं इसका पुत्र है। फिर भी इससे ही पूछ लीजिये फिर मैं आपको संतुष्ट कर दूँगा।’’ मुस्कुराते हुये जाबालि ने कहा।
‘‘नाम क्या है तुम्हारा ?’’ कैकेयी ने पूछा।
‘‘गोकरन महारानी जी !’’
‘‘घर तुमने स्वेच्छा से विक्रय किया था।’’
‘‘जी !’’
‘‘विक्रय की पूरी राशि तुम्हें मिल गयी थी।’’
‘‘जी !’’
‘‘राशि कम तो नहीं थी ? गिन ली थी ठीक प्रकार से ?’’
‘‘जी महारानी जी !’’
‘‘तुम्हें गिनना आता है।’’
‘‘नहीं महारानी जी।’’
‘‘फिर कैसे गिनी थी ?’’
‘‘महन्त जी ने ही एक-एक कर मुद्रायें मुझे गिनकर समझायी थीं।’’
‘‘तुम संतुष्ट हो ?’’
‘‘जी !’’
कैकेयी ने कुछ क्षण सोचा फिर बोली -
‘‘एक बात और बताओ ! घर तुम्हारा ही था, तुम्हारे पुत्र का तो नहीं था ?’’
‘‘नहीं महारानी जी ! मेरा ही था।’’
‘‘लीजिये महामात्य ! सब कुछ तो दर्पण की भाँति स्पष्ट है।’’
‘‘दो प्रश्न मैं भी पूछ लूँ महारानी ?’’ जाबालि ने पूछा।
‘‘जितने चाहें पूछिये। आखिर आप महामात्य हैं।’’ कैकेयी ने कुछ व्यंग्य से कहा।

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित
..................................... सुलभ अग्निहोत्री

Views: 379

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service