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कुछ क्षणिकाएँ :

कुछ क्षणिकाएँ :

इतना तो न था
खालीपन
तुम्हारी मिलने से पहले
जितना हो गया
तुम से बिछुड़ने के बाद
ख़्वाबों की ज़मीन पर
अहसासों की ओस
पिघल गयी
तुम्हारी यादों से

......................
प्रयास
क्षितिज छूने का
विशवास
झूठे वादों का
प्यास
मरीचिका सी

.......................

माह
बदलते -बदलते
आ जाता है
कैलेंडर का अंतिम माह
अर्थात
वर्ष का चरम
और होते होते
हो जाता है
धागा टाँगने का
छोटा सा
अर्थात अपने अंत का चरम
जीने लगती हैं
साँसें
कैलेंडर की तरह
जीते जीते
अपने अंत का चरम

....................................


पंछी
ग़म के जाते नहीं
और
ख़ुशी के
लौट कर
आते नहीं
आशियानों में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 397

Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 4, 2020 at 5:18pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सादर प्रणाम .... सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।
Comment by Sushil Sarna on February 4, 2020 at 5:18pm
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... आदरणीय सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा एवं सुझाव हेतु तहे दिल से शुक्रिया। सर मैंने एडिट कर दिया है। आपके सुझाव मेरे लिए अमूल्य हैं। हार्दिक आभार सर।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:03am

आ. भाई सुशील जी अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on January 31, 2020 at 3:14pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं,बधाई स्वीकार करें ।

'इतना तो न था 
खालीपन 
तुम्हारी मिलने से पहले 
जितना हो गया 
तुम्हारी बिछुड़ने के बाद--'

 की ज़मीन पर 
अहसासों की ओस 
पिघल गयी 
तेरी यादों से'

इस क्षणिका की तीसरी पंक्ति में 'तुम्हारी' की जगह "तुम्हारे" कर लें ।

5वीं पंक्ति में 'तुम्हारी' की जगह "तुम से" कर लें ।

अंतिम पंक्ति में 'तेरी' की जगह "तुम्हारी" कर लें ।

आख़री क्षणिका में 'पँछी' को "पंछी" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

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"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
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