समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है
ये जो है लड़की
हैं उसकी जो आँखे
हैं उनमें जो सपने
जागे से सपने
भागे से सपने
सपनों में
पंख
पंखों में
परवाज
बंद खामोशी में पुरज़ोर आवाज
आवाज़ में
वादा
बहुत सच्चा, बहुत सीधा -बहुत सादा
कि
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूंगी
ओढ़ ही नहीं पाऊंगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वंय को छोड़ ही नहीं पाऊंगी
मेरी उड़ान में
सारा जहां उड़ पायेगा
जब जब थकेगा जहान
मेरे आँचल में दुबक आएगा
मत डरो, मत घबराओ
कि मुझे पंख मिले तो मैं पता नहीं क्या कर जाऊंगी
तुमसे आगे कहीं दूर निकल जाऊंगी
तुम्हारे अंगना में देहरी में नहीं समाऊँगी
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूंगी
ओढ़ ही नहीं पाऊंगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वंय को छोड़ ही नहीं पाऊंगी
मेरे भाई
राखी ले के बहना तेरे ही पास आयेगी
मेरे बाबा
ये बेटी आसमान से उतर के आयेगी
तो भी तेरे ही अंगना में नन्ही बन इतराएगी
मेरे सैयां
तुम्हारे भी संग संग उडूँगी
हिमालय पर तुम संग पाँव जड़ूंगी
समंदर के तल तक तैरती जाऊंगी
अनछुई अनखुली सीपी ले आँऊगी
तुम संग मिल कर गूँथूंगी माला
नन्ही को तुम संग मिल के पहनाऊँगी
सच कहती हूँ
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूंगी
ओढ़ ही नहीं पाऊंगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वंय को छोड़ ही नहीं पाऊंगी
आधी आबादी हूँ पर सच्च ये पूरा है
समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है
मौलिक एव अप्रकाशित
Comment
आ. अमिता जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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