For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तृप्ति

चहुँ ओर उलझा कटा-पिटा सत्य

कितना आसान है हर किसी का

स्वयं को क्षमा कर देना

हो चाहे जीवन की डूबती संध्या

आन्तरिक द्वंद्व और आंदोलन

मानसिक सरहदें लाँघते अशक्ति, विरोध

स्वयं से टकराहट

व्यक्तित्व .. यंत्रबद्ध खंड-खंड

जब देखो जहाँ देखो हर किसी में

पलायन की ही प्रवृत्ति

एक रिश्ते से दूसरे ...

एक कदम इस नाव

एक ... उस नाव

कल्पना-जाल ही तो है

यह आज की ईमानदारी

कोई कहे इसको प्रगतिशीलता

कोई कहे समाई है इसी में

मानव-मुक्ति

नहीं ज़रूरत है मुझको

ऐसी मानव-मुक्ति की

ऐसे पलायन की

ज़रूरत है मुझको

तृप्ति की, केवल तृप्ति की

इस सबसे कहीं दूर ...

आओ प्रिय, सुनो गुनगुनाहट

दे दो हाथ, बाहों में बाहें डाल

एक ही नाव में चलें हम दोनो

इसी क्षण, आँखें बंद

एक संग  "उस"  पार

आओ, पा लें हम अपनापन

उफ़ ! छा गया घना अँधेरा 

नदी के पानी पर भी है

अब बेमाप चादर काली

जल टूट रहा है ... और

प्रिय, कहाँ हो तुम ?

तृप्ति ...

मेरी तृप्ति

अपनी-सी धड़कन

कहाँ हो तुम ?

           ------

--  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 365

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 23, 2020 at 11:30am

प्रिय मित्र लक्ष्मण जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2020 at 10:53am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । अच्छी कविता हुई है। हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on March 21, 2020 at 9:34am

प्रिय भाई समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार। आपसे जब कुछ सीखने को मिलता है तो और भी अच्छा लगता है।

मैं ग़लती को सही कर दूँगा।

Comment by Samar kabeer on March 19, 2020 at 6:07pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, बहुत उम्द: रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'स्वयं को माफ़ कर देना'

इस पंक्ति में 'माफ़' को "मुआफ़" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service