बदलाव !
तड़के प्रात:
स्वच्छ धूप की नरम दूब से
मिलने की उत्सुक्ता ...
कुछ इसी तरह कोई लोग
कितनी उत्सुक्ता से अपने बनते
निज को समर्पित करते
भावनाएँ और समय देते हैं
भावनाएँ और समय लेते हैं
आदर देते हैं ... आदर लेते हैं
इस तरह कि जैसे यह सब सच में
रखता हो बहुत मान्य उनके लिए
या जैसे हो यह सब समीपता
हमेशा के लिए
समय की तीव्र धारा
अभी-अभी तो यहीं था ध्रुव तारा
कोई अज्ञात ज्वार था हर मिलन में
सही तो हो रहा था सब कुछ
खिला था मन का कोना-कोना
कोई आदत, कोई परम्परा हो जैसे
कभी इस कभी उस आत्मीय परिचय को
हवाओं के रुख की तरह
समय के साथ
अक्सर बदलते देखा
कटी पतंग मानो
हवाओं के साथ मकानों के पार
उड़ती चली जाती है
और हम देखते रह जाते हैं देर तक
हाथ में टूटी डोर लिए
बहुत
बहुत दुखता रहता है मन
देर तक, चिरकाल तक
चली जाती है धूप
छिप जाता है सूरज कहीं दूर पर
गहन अपूर्णता का भान ...
बिखर-बिखर जाता है
बेसुध-सा मन
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरे प्रिय भाई समर कबीर जी,
आपकी ख़ैरियत के लिए प्रार्थना जारी रहेगी।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, मेरी हालत भी आपके जैसी ही रही पिछले दिनों, अभी लम्बी ग़ैर हाज़िरी के बाद ओबीओ पर आया हूँ, अपना ध्यान रखें और ख़ैरियत से आगाह करते रहें, मैं आपके लिए दुआ गो हूँ ।
प्रिय मित्र लक्ष्मण धामी जी,
इस रचना को मान देने के लिए हृदयतल से आभार। उत्तर देने में बहुत विलम्ब के क्षमाप्रार्थी हूँ।
सादर,
विजय निकोर
अज़ीज़ समर कबीर जी, आदाब।
आपके कुशल की प्रार्थना लिए मैं आज बहुत समय के बाद ओ बी ओ पर आया हूँ। आठ साल से ओ बी ओ पर सदस्यता के अन्तर्गत
पहले तो कभी ऐसा न हुआ कि इतने समय तक न आऊँ। कुछ health issues के कारण न आया। भगवान जी की मेहरबानी से अब ठीक हूँ।आपने मेरी रचना को सराहा, मान दिया, इसके लिए हृदयतल से आभारी हूँ। विलम्ब के लिए माफ़ी मांगता हूँ, मेरे भाई।
आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक अच्छी रचना से मंच को नवाज़ा है,आपने, इस उम्द: प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
अपनी ख़ैरियत से आगाह करते रहें,मुझे आपकी बहुत चिंता रहती है,अल्लाह आपको ख़ैरियत से रखे ।
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