कोरोनामय जग हुआ, फीका पड़ा बसन्त
माँगे खुद की खैर अब, राजा, रंक, महन्त।१।
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जन्मा चाहे चीन में, लाये अपने लोग
जिससे सारे देश में, फैल रहा यह रोग।२।
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विकट घड़ी में आपदा, आयी सबके द्वार
घर के बाहर आ मगर, करो नहीं सत्कार।३।
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घर में बैठो चन्द दिन, ढककर खिड़की द्वार
कोरोना पर वार को, यही सफल हथियार।४।
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आज चिकित्सक का कहा, थोड़ा मानव मान
घर में चुपके बैठ कर, होगा रोग निदान।५।
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करो नमस्ते दूर से , नहीं मिलाओ हाथ
वरना झट से आएगा, कोरोना भी साथ।६।
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सजग नागरिक बन करो, शासन का सहयोग
फिर पहुँचेगा अन्त को, यह कोरोना रोग।७।
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कोरोना के अन्त तक, रहें भीड़ से दूर
दिनभर जितना हो सके, तरल पियें भरपूर।८।
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दूरी अपने - गैर से, रखने का औचित्य
जीवन तेरा जो बचा, खूब मिलेगा नित्य।९।
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कोरोना से भय नहीं, जिन लोगों को यार
ज्ञानी उनको मत समझ, वो जग पर हैं भार।१०।
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मौलिक-अप्रकाशित
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, कोरोना पर अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
द्वार
'घर के बाहर आ मगर, करो नहीं सत्कार'
इस पंक्ति में एक वचन,बहुवचन दोष देख लें ।
'कोरोना पर वार को, यही सफल हथियार'
इस पंक्ति के विषम चरण में 'को' की जगह "का" शब्द उचित होगा ।
वाह शानदार भाई लक्ष्मणजी हार्दिक बधाई आपको
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