एक गीत
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न भुज-बल है और न धन-बल ,
मनुज बड़ा सबसे बुद्धि-बल |
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अभिमानी करते हैं केवल नित्य प्रदर्शन अपने धन का |
डर फैलाते चन्द भुजबली रोब दिखाकर अपने तन का |
लक्ष्मी जैसे ही रूठेगी सर्वनाश होना निश्चित है |
मिला स्वयं से शक्तिमान तो गर्व नाश होना निश्चित है |
कहने का बस अर्थ यही है धन-बल भुज-बल हैं अस्थायी,
किन्तु भ्रष्ट नहीं हो जब तक
अक़्ल कभी न करती है छल |
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न भुज-बल है और .......
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हथियारों के बल पर किस ने अब तक युद्धों को जीता है |
बुद्धिमान हो सेना-नायक वही विजय-अमरित पीता है |
अस्त्र शस्त्र से नहीं समन्वय रण कौशल का यदि होता है |
चाहे हो कितना बलशाली नायक निज गरिमा खोता है |
महा-युद्ध वे पांडव बंधू जीत कभी भी क्या सकते थे,
पृष्ठ भाग में यदि कृष्ण का
तनिक न होता बुद्धि-कौशल |
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न भुज-बल है और .......
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आज जिधर भी देखें हम तो नफ़रत बल हावी दिखता है |
राजनीति की लिप्साओं से लगता ज्यों इसका रिश्ता है |
मजहब और जाति के कारण अब भी होते रहते दंगे |
जितने भी दल हैं भारत में स्नानघरों में सारे नंगे |
एक उपाय बचा है केवल राह प्रेम की सब अपनाएँ ,
धन-बल भुज-बल बुद्धि-बल से
इत्तर होता है प्रीति-बल |
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न भुज-बल है और .......
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Shyam Narain Verma जी , उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार एवं नमन |
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी , आपकी सराहना के लिए सादर आभार
आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी आपने। पढ़ कर मन हरियर हो गया। बहुत बहुत बधाई आपको
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