++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )
न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत
कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत
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ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में
सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत
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दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे
कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत
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सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना
न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत
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जवानों के नए अंदाज़ आँखों में खटकते हैं
खुलेआम अब चिपकते हैं बदन ज़ुन्नार की सूरत
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रियाया को सियासतदाँ समझ बैठे हैं रक़्क़ासा
नचाते वोट लेकर अबरू-ए-ख़म-दार की सूरत
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मुहब्बत में जबरदस्ती चलन है पुरख़तर यारो
मना करने पे जलती है यहाँ दिलदार की सूरत
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अजब है दौर-ए-हाज़िर हर कोई तैयार बिकने को
बदलती जा रही है आजकल बाज़ार की सूरत
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'तुरंत'उम्र-ए-बहारां में किसी का ख़्वाब देखा था
मेरी ग़ज़लों में ढलता है वही अशआर की सूरत
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , हौसला आफ़जाई के लिए दिली शुक्रिया
हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी जी। बेहतरीन गज़ल।
रियाया को सियासतदाँ समझ बैठे हैं रक़्क़ासा
नचाते वोट लेकर अबरू-ए-ख़म-दार की सूरत
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी , हौसला आफजाई के लिए दिली शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ,उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार एवं नमन
आ. भाई गिरधर सिह जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये।
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