2122 2122 2122
अश्क धोकर आदमी थकने लगा है
सोचता - अब और रोना तो बला है।1
गर्दिशों का दौर बढ़ता,देखिए तो
शोर का कुछ भाव ज्यादा ही चढ़ा है।2
गुम हुई - सी जा रही पहचान फिर से
जिंदगी जो दे,उसे मरना पड़ा है।3
डंस रहा जाहिल अंधेरा आदमी को,
क्यूं उजाला रेत बन धुंधला हुआ है?4
कोसते हैं लोग कुछ भगवान को भी
जब संजोई गांठ में विष ही भरा है।5
ख्वाब चकनाचूर, आंखें पूछती हैं --
देखने से भी मना किसने किया है?6
बोलना सच हो रहा मुश्किल यहां पर
'पीठ वैसी कर हवा जैसी', सुना है।7
सुर्खियों में हो गए शैतान सारे
आदमी के वास्ते क्या कुछ बचा है?8
'जिंदगी की पौध पनपाओ बशर तुम'
आ रही अब दूर से कोई सदा है।9
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आभार आदरणीय समर जी,नमन।प्रयास सत त जारी है।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
आभार आदरणीय लक्ष्मण जी।
आभार आदरणीय तेजवीर जी।
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।बेहतरीन गज़ल।
सुर्खियों में हो गए शैतान सारे
आदमी के वास्ते क्या कुछ बचा है?8
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online