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जीवन पर कुछ दोहे :

जाने कितनी दूर थी, जाने कितनी पास।
जाने किसकी जोह में, रुकी हुई थी श्वास।।

जाने किसकी जोह में, तरल हो गई आस।
एक श्वास थी ज़िंदगी, एक श्वास संत्रास।।

जीवन के विश्राम तक, मिटी न मन की जोह।
करते करते सो गया, जीव सत्य की टोह।।

बड़ा अजब है जीव का, जीवन के प्रति मोह।
जीत न पाया अंत से, खूब किया विद्रोह।।

मृत्यु देह की है सखा, जीवन गहरी खोह।
फिर भी इस संसार से, मिटे न मन का मोह।।



सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 3:57pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत दोहे रचे हैं । बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 8:16am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । अच्छे दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

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