1212, 212, 122, 12 12, 212, 122
बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे
है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे
बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं
हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे
बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे
पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे
क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है
नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर दे
कटी नहीं थी पतंग मेरी मुझे तो अपनों से हारना था
यूं हारने में अलग मज़ा था गधों की गिनती हज़ार कर दे
तलाश मेरी रही अधूरी, किताब पढ़ कर वहीं पे रख दी
नहीं था चहरा कवर के जैसा मुझे तू चहरा सँवार कर दे
वो न्यूज़ चैनल अलग नहीं था बदल के देखा हरेक चैनल
बता के आँधी बता के तूफ़ाँ ये बस ख़बर को ग़ुबार कर दे
है दिल कि धड़कन में तू ही तू बस ओ रेज़ा रेज़ा बदन भी तेरा
बहुत हुआ अब यूं तड़पाना मुझमें जो छूटा वो निखार कर दे
डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय उस्ताद मोहतरम Samar Kabeer साहब आदाब, चरण स्पर्श , जी आदरणीय मैं आपकी सलाह से पूर्णतः सहमत हूँ , और आपके कहे अनुसार बड़े शायरों के कलाम और 'ग़ज़ल की बाबत' किताब भी पढ़ रही हूँ , इसके अलावा अभी ये जो फिलहाल उल्टा सीधा कलम चलाने का प्रयास कर रही हूँ वो बस इस लिए की आदमी जब प्रेक्टिली कुछ करता है तभी उसे पता चलता है कि कहाँ चूक हुई क्या कुछ छूटा क्या कुछ नया सीखा , अभी कुछ दिनों से समुह में मुझे आप सभी से वो सब जानकारीयाँ मिली जो मैं बस पढ़ते रहती तो मिल तो जाती पर इतने संक्षेप में समझ में नहीं आती , इसलिए आदरणीय बस कोशिश करती हूँ कि मैं बहुत सी ऐसी गलतियां करुँ जो गलतियां मुझे हर बार कुछ अनौखा कुछ नया सीखा जाए , जो कोई किताब या कोई ग़ज़ल ना सीखा पाए और आपकी डांट आपका मार्गदर्शन सीखा जाए , आदरणीय कृपा दृष्टि बनाए रखें आशीर्वाद के लिए हमेशा सर पर हाथ रखें और गलतियां करुँ तब कान पकड़ लें ।
मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दो सूरज इस पर अपना प्रकाश डाल चुके हैं ।
ग़ज़ल कहना बच्चों का खेल नहीं है,बहुत मुश्किल काम है,कथ्य,शिल्प,व्याकरण,बह्र हर चीज़ का ध्यान रखना पड़ता है,आपको मेरा मशविरा है कि पुराने शाइरों का कलाम ज़ियादा से ज़ियादा पढ़ें,और वीनस जी की किताब "ग़ज़ल की बाबत" को मन लगा कर पढ़ें ।
आदरणीय Ravi Shukla जी नमस्कार, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार,इसको बेहतर करने का पूर्ण प्रयास रहेगा , आपके पास भी कुछ अच्छे सुझाव हों तो कृप्या साझा करें,इस क्षेत्र में अभी नई हूँ बहर और ग़ज़ल की कोई विशेष जानकारी है नहीं परन्तु यक़ीन है कि आप सभी गुणी जनों के सानिध्य में जल्दी ही बहुत कुछ अच्छा सीखने को मिलेगा और कुछ न कुछ बेहतर कर लूंगी , आशीर्वाद बनाए रखें आदरणीय मार्गदर्शन करते रहें,एक बार फिर हृदय तल से आभार आपका।
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति मेरा हौंसला बढ़ाती है , आपके कहे अनुसार में आख़िरी शेर पर हुई गलती को जरूर ठीक से सुधार करने की कोशिश करुंगी , आपका मार्गदर्शन आगे भी यूं ही मिलता रहे इसी उम्मीद के साथ हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ आपका , आशीर्वाद बनाए रखें।
आदरणीयाा डिंपल जी इस गीत पर आदरणीय रवि भसीन जी ने बहर के बारे में कह ही दिया है और आपकी कोशिश भी बहुत अच्छी हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें । अशआर को अभीऔर बेहतर करने की गुंजाइश है इनमें । साादर
आदरणीया Dimple Sharma जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है, बधाई स्वीकार करें। इस बह्र के अरकान इस तरह लिख लीजिये:
मुक्तज़ब मुसम्मन मख़्बून मर्फूअ' मख़्बून मर्फूअ' मुसक्किन मुज़ाइफ़
फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन // फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन
12122 / 12122 // 12122 / 12122
आदरणीया, लफ़्ज़ 'दीद' स्त्रीलिंग होता है। लता जी का गाया हुआ और साहिर लुधियानवी जी का लिखा हुआ बहुत मशहूर गीत है:
मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का
कैसी ख़ुशी ले के आया चाँद ईद का
आख़िरी शे'र का सानी बह्र से ख़ारिज है, कृपया दोबारा तक़तीअ कर के देखें। सादर
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