221 2122 221 2122
ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त/1
जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त
इस बार लिखना तय था वरना तो जाने कब से/2
आ जा रहे थे ख़्वाबों में उनके घर मेरे ख़त
अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3
चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त
सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4
उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त
होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5
अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त
इनकार लिखना…
ContinueAdded by Dimple Sharma on September 6, 2020 at 3:07pm — 10 Comments
1212 1122 1212 22
बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा
तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा
तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा
मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा
था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा
जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6
तो लो खरीद लिया…
Added by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:00pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
सुन इश्क जादू-टोने में कुछ वक़्त लगता है/1
ये प्यार-व्यार होने में कुछ वक़्त लगता है
मैं चाहती हूँ रोना बड़ी जोर से मगर/2
दिल खोल कर के रोने में कुछ वक़्त लगता है
ये सर्द रातें दर्द बयां करती है मेरा*
अंधेरे कमरें में मैंने पैकर का घर देखा/3
तन्हा अकेले सोने में कुछ वक़्त लगता है
पड़ जाएं हम किसी के यूं ही इश्क़ में कैसे/4
हमको किसी का होने में कुछ वक़्त लगता है
हम तो ज़मीं पे सोते हैं तारों की छांव में/5
समझो…
Added by Dimple Sharma on August 18, 2020 at 3:04pm — 7 Comments
221 1221 1221 122
दीवार से तस्वीर हटाने के लिए आ
झगड़ा है तेरा मुझसे जताने के लिए आ/1
तू वैद्य मुहब्बत का है मैं इश्क़ में घायल
चल ज़ख्म पे मरहम ही लगाने के लिए आ/2
पत्थर हुए जाती हूं मैं पत्थर से भी ज्यादा
तू मोम मुझे फिर से बनाने के लिए आ/3
है आईना टूटा हुआ चहरा न दिखेगा
सूरत तेरी आँखों में दिखाने के लिए आ/4
ये बाज़ी यहाँ इश्क़ की मैं हार के बैठी
तू दर्द भरा गीत ही गाने के लिए आ /5
रुसवाई भी होती है मुहब्बत के सफ़र में…
Added by Dimple Sharma on July 21, 2020 at 6:00am — 11 Comments
1212, 212, 122, 12 12, 212, 122
बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे
है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे
बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं
हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे
बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे
पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे
क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है
नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर…
Added by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
एक नज़्म
अरकान-2212, 2212, 2212
दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है
हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है
मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है
हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे
मेरी दुआ से याब में तू ही तू है
पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है
हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है
भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही…
Added by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 7:05pm — 18 Comments
कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम
कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम
हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम
अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम
हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम
वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम
डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dimple Sharma on June 7, 2020 at 2:36pm — 10 Comments
वहाँ एक आशिक खड़ा है ।
जो दिल तोड़ कर हँस रहा है ।।
मुहब्बत करें तो करें क्या ..?
मुहब्बत में धोका बड़ा है ।।
हमें आग का डर नहीं था ।
कि सैलाब अन्दर भरा है ।।
भले जिस्म थक हार जाए ।
अभी जोश दिल में बड़ा है ।।
ख़ुदा ख़ैर हमको मिले वो ।
ज़माना बहुत ही बुरा है ।।
कहांँ है जहाँ में मुहब्बत ।
सभी तो सभी से ख़फ़ा है ।।
हमें रात लड़ना पड़ा था ।
उजाला बहुत ग़मज़दा है ।।
यकीं कौन हम पे करेगा ।
ये ढांचा हमीं पे…
Added by Dimple Sharma on June 5, 2020 at 2:00pm — 9 Comments
कहीं नायाब पत्थर है , कहीं मन्दिर मदीना है
तेरा घर संगेमरमर का , मेरा तो नीला ज़ीना है
कोई मन्दिर पे सर टेके, कोई काबा को माने है
मैं हर पत्थर पे सर टेकूं जहाँ नेकी क़रीना है
कहीं पर धूप है तपती, कहीं सागर की लहरें हैं
अजब है रंग दरिया का, जहाँ तेरा सफ़ीना है
कोई ऐ सी में बैठा है , कोई छतरी को भी तरसे
मगर ख़ूँ एक सा बहता, बहे इक सा पसीना है
कभी मिट्टी से भी पूछो, कि जलना है या दफना दूं
कहे मिट्टी दे आज़ादी…
Added by Dimple Sharma on June 3, 2020 at 6:30pm — 7 Comments
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