1212 1122 1212 22
बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा
तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा
तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा
मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा
था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा
जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6
तो लो खरीद लिया है मैंने कफ़न मेरा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
एक अच्छा प्रयास है। आदरणीय उस्ताद जी ने अच्छा सुझाव दिया है जो मेरे जैसे नये गजल लिखने वाले के लिए भी बेहतरीन है।
आदरणीय उस्ताद मोहतरम समय कबीर साहब आदाब चरण स्पर्श,ये ग़ज़ल अभी नहीं पहले की लिखी हुई है आदरणीय उस्ताद मोहतरम, और भी कुछ ग़ज़लें हैं जो मैंने पहले लिखी थीं पर उनमें कहाँ क्या गलतियां हुई कहाँ क्या ठीक है जानकारी न होने के कारण कहीं पोस्ट नहीं की आपके कहने के बाद मैंने कुछ दो चार शेर ही कहें हैं उस्ताद मोहतरम, और आप निवेदन शब्द का इस्तेमाल न करें उस्ताद मोहतरम निवेदन तो मैं करुंगी आपसे और करती हूं, आप केवल आदेश दें हुक्म दिया करें कृप्या, उस्ताद मोहतरम इस ग़ज़ल में कुछ सुधार कर नीचे कमेंट में भी पोस्ट किया है जब आपको कभी ठीक लगे तो कृप्या एक नजर डालें ताकी मुझे खुद से खुद की गलतियां समझ आ रही है कि नहीं इसकी जानकारी हो , आपकी आँखों में तकलीफ है इसके बावजूद मैंने इतना लम्बा मैसेज किया उसके लिए हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थी हूं कृप्या क्षमा करें और आशीर्वाद बनाए रखें।
मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, मैंने आपसे पहले भी निवेदन किया था कि आप अपनी बनाई ज़मीनों के बजाय पुराने उस्ताद शाइरों के मिसरे लेकर उन पर अभ्यास करें,तो आपके लिए बहतर होगा ।
'ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'मगर बदल न सकेगा कभी ये मन मेरा'
तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा'
इस शैर का ऊला बह्र में नहीं,और कथ्य भी शैर में नहीं, इसे हटा दें ।
'तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा'
इस शैर का ऊला बह्र में नहीं,और शिल्प भी कमज़ोर है,इस शैर को यूँ कर सकती हैं:-
'कभी न छोड़ के जाना मुझे मेरे हमदम
न होगा तू तो निहारेगा कौन तन मेरा'
'मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा'
इस शैर को यूँ कर लें:-
'ख़बर मिली है मुझे तेरे आने की जब से
महक रहा है मेरी जान ये बदन मेरा'
'था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा'
इस शैर का ऊला बह्र में नहीं,यूँ कर लें:-
'किसी भी ग़ैर को इल्ज़ाम कैसे दूँ यारो'
'जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था
तो लो खरीद लिया है मैंने कफ़न मेरा'
इस शैर को यूँ कर लें:-
'है मेरी मौत का इतना यकीं अज़ीज़ों को
ख़रीद लाये हैं कुछ लोग तो कफ़न मेरा'
मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी, माज़रत के साथ कहना चाहता हूँ कि आपकी ग़ज़ल की ज़मीन और बह्र ज़रा अलग हैं, बह्र के तमाम अरकान मुज़ाहिफ़ हैं कोई सालिम रुक्न नहीं है जिस पर ग़ज़ल कहना या इस्लाह करना आसान नहीं है, मुझे लगता है कि आपकी इस ज़मीन और बह्र पर सिर्फ उस्ताद-ए-मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब ही बहतर इस्लाह दे सकते हैं। आप उनसे दरख़्वास्त कर सकती हैं। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब,आपके कहे अनुसार ग़ज़ल को थोड़ा और निखारने की कोशिश की है मैंने कामयाब हुई या नहीं कृप्या मार्गदर्शन करें।
1212 1122 1212 22
बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा
तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख़्यालों में आना /2
तेरे ही आने का हासिल है ये सुख़न मेरा
ये इश्क़ रश्क महब्बत तो साफ़ धोखा था/3
उन्हें निहारना था ये जवाँ बदन मेरा
यकीं हुआ अभी वाक़ई मैं ख़ूबसूरत हूं/3
जो मैंने देखा तेरी आँख से बदन मेरा
मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख़्याल से बदन मेरा
था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा
जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को है/6
मँगा लिया चलो मैंने भी कफ़न मेरा
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब आदाब,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हौसला बढ़ाती है,जी आदरणीय मैं कोशिश करूंगी और बेहतर करने का आपका मार्गदर्शन और आपका आशीर्वाद यूं ही बना रहे ।
मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है मगर ग़ज़ल अभी और वक़्त और मिहनत चाहती है। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online