For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा (ग़ज़ल)

1212 1122 1212 22  

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा

तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा

तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा

मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा

था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा

जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6
तो लो खरीद लिया है मैंने कफ़न मेरा

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on September 10, 2020 at 10:24pm

एक अच्छा प्रयास है। आदरणीय उस्ताद जी ने अच्छा सुझाव दिया है जो मेरे जैसे नये गजल लिखने वाले के लिए भी बेहतरीन है। 

Comment by Dimple Sharma on September 8, 2020 at 10:06pm

आदरणीय उस्ताद मोहतरम समय कबीर साहब आदाब चरण स्पर्श,ये ग़ज़ल अभी नहीं पहले की लिखी हुई है आदरणीय उस्ताद मोहतरम, और भी कुछ ग़ज़लें हैं जो मैंने पहले लिखी थीं पर उनमें कहाँ क्या गलतियां हुई कहाँ क्या ठीक है जानकारी न होने के कारण कहीं पोस्ट नहीं की आपके कहने के बाद मैंने कुछ दो चार शेर ही कहें हैं उस्ताद मोहतरम, और आप निवेदन शब्द का इस्तेमाल न करें उस्ताद मोहतरम निवेदन तो मैं करुंगी आपसे और करती हूं, आप केवल आदेश दें हुक्म दिया करें कृप्या, उस्ताद मोहतरम इस ग़ज़ल में कुछ सुधार कर नीचे कमेंट में भी पोस्ट किया है जब आपको कभी ठीक लगे तो कृप्या एक नजर डालें ताकी मुझे खुद से खुद की गलतियां समझ आ रही है कि नहीं इसकी जानकारी हो , आपकी आँखों में तकलीफ है इसके बावजूद मैंने इतना लम्बा मैसेज किया उसके लिए हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थी हूं कृप्या क्षमा करें और आशीर्वाद बनाए रखें।

Comment by Samar kabeer on September 7, 2020 at 7:42pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, मैंने आपसे पहले भी निवेदन किया था कि आप अपनी बनाई ज़मीनों के बजाय पुराने उस्ताद शाइरों के मिसरे लेकर उन पर अभ्यास करें,तो आपके लिए बहतर होगा ।

'ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'मगर बदल न सकेगा कभी ये मन मेरा'

तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा'

इस शैर का ऊला बह्र में नहीं,और कथ्य भी शैर में नहीं, इसे हटा दें ।

'तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा'

इस शैर का ऊला बह्र में नहीं,और शिल्प भी कमज़ोर है,इस शैर को यूँ कर सकती हैं:-

'कभी न छोड़ के जाना मुझे मेरे हमदम

न होगा तू तो निहारेगा कौन तन मेरा'

'मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा'

इस शैर को यूँ कर लें:-

'ख़बर मिली है मुझे तेरे आने की जब से

महक रहा है मेरी जान ये बदन मेरा'

'था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा'

इस शैर का ऊला बह्र में नहीं,यूँ कर लें:-

'किसी भी ग़ैर को इल्ज़ाम कैसे दूँ यारो'

'जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था
तो लो खरीद लिया है मैंने कफ़न मेरा'

इस शैर को यूँ कर लें:-

'है मेरी मौत का इतना यकीं अज़ीज़ों को

ख़रीद लाये हैं कुछ लोग तो कफ़न मेरा'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2020 at 5:58pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी, माज़रत के साथ कहना चाहता हूँ कि आपकी ग़ज़ल की ज़मीन और बह्र ज़रा अलग हैं, बह्र के तमाम अरकान मुज़ाहिफ़ हैं कोई सालिम रुक्न नहीं है जिस पर ग़ज़ल कहना या इस्लाह करना आसान नहीं है, मुझे लगता है कि आपकी इस ज़मीन और बह्र पर सिर्फ उस्ताद-ए-मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब ही बहतर इस्लाह दे सकते हैं। आप उनसे दरख़्वास्त कर सकती हैं। सादर। 

Comment by Dimple Sharma on September 7, 2020 at 4:33pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब,आपके कहे अनुसार ग़ज़ल को थोड़ा और निखारने की कोशिश की है मैंने कामयाब हुई या नहीं कृप्या मार्गदर्शन करें।
1212 1122 1212 22  

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा

तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख़्यालों में आना /2
तेरे ही आने का हासिल है ये सुख़न मेरा

ये इश्क़ रश्क महब्बत तो साफ़ धोखा था/3
उन्हें निहारना था ये जवाँ बदन मेरा

यकीं हुआ अभी वाक़ई मैं ख़ूबसूरत हूं/3
जो मैंने देखा तेरी आँख से बदन मेरा

मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख़्याल से बदन मेरा

था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा

जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को है/6
मँगा लिया चलो मैंने भी कफ़न मेरा

मौलिक एवं अप्रकाशित

Comment by Dimple Sharma on September 5, 2020 at 3:49am

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब आदाब,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हौसला बढ़ाती है,जी आदरणीय मैं कोशिश करूंगी और बेहतर करने का आपका मार्गदर्शन और आपका आशीर्वाद यूं ही बना रहे ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 4, 2020 at 8:49pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है मगर ग़ज़ल अभी और वक़्त और मिहनत चाहती है। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service