For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2122 221 2122

ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त/1
जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त

इस बार लिखना तय था वरना तो जाने कब से/2
आ जा रहे थे ख़्वाबों में उनके घर मेरे ख़त

अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3
चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त

सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4
उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त

होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5
अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त

इनकार लिखना इतना आसाँ नहीं समझ ले/6
लिखता हूँ मन है भारी पल भर ठहर मेरे ख़त

रद्दी के भाव बिके थे ज़रुरत को आगे रखकर/7
अब काम आ रहे थे कुछ इस क़दर मेरे ख़त

श्रृंगार कर लिया था आँखों ने उनकी ऐसा/8
हँस हँस के पढ़ रहे थे उनके गुहर मेरे ख़त

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on September 9, 2020 at 4:28pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफजाई के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय जी सही कहा आपने आदरणीय आदरणीय उस्ताद मोहतरम और सभी गुणीजनों के सानिध्य में हर रोज कुछ नया सीखने को मिल रहा है जो की ईश्वर कृपा समान है , इसके लिए जितना धन्यवाद किया जाए उतना कम है।

Comment by Harash Mahajan on September 9, 2020 at 10:21am

आ0 डिम्पल शर्मा जी आपकी ग़ज़ल की शिल्प के बारे में आदरणीय समर कबीर जी और अम्मीरुद्दीन जी सबकुछ अच्छे से कह दिया है जिससे हम लाभान्वित तो होंगे ही । मगर ग़ज़ल में आपके ख्याल बहुत ही खूबसूरत हैं ।

सादर

Comment by Dimple Sharma on September 8, 2020 at 9:53pm

आदरणीय आशीष यादव जी नमस्ते,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति मायने रखती है हृदय तल से आभार आपका आदरणीय।

Comment by Dimple Sharma on September 8, 2020 at 9:53pm

आदरणीय सुशील शर्मा जी नमस्ते, बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हौसला बढ़ाती है यूं ही हौसला बढ़ाते रहें आदरणीय।

Comment by Dimple Sharma on September 8, 2020 at 9:52pm

आदरणीय उस्ताद मोहतरम समय कबीर साहब आदाब चरण स्पर्श,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति ईश्वर कृपा समान है , जी मैं सुधार करने का प्रयास करती हूं उस्ताद मोहतरम, हृदय तल से आभार आपका आदरणीय उस्ताद मोहतरम की आपकी तबीयत ठीक न होते हुए भी आप हमारा मार्गदर्शन कर रहे हो , आशीर्वाद और कृपा दृष्टि बनाए रखें।

Comment by आशीष यादव on September 8, 2020 at 3:54pm

बहुत अच्छी गजल का प्रयास किया गया है। भाव बहुत अच्छे हैं। आदरणीय उस्ताद साहिबान की सलाह पर भी ध्यान दीजियेगा।

Comment by Sushil Sarna on September 8, 2020 at 12:32pm
आदरणीया जी सुन्दर भावपूर्ण गजल बाकी गुणीजनो की समीक्षा से लाभ ग्रहण करें ।सादर
Comment by Samar kabeer on September 7, 2020 at 8:07pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, आपकी ग़ज़ल पर जनाब अमीरुद्दीन जी विस्तार से बता ही चुके हैं,।

221 2122 221 2122

'ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त
जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त'

मतले के ऊला में सहीह शब्द "मुआमला" 1212 और सानी में 'शहर' क़ाफ़िया उचित नहीं क्योंकि सहीह शब्द "शह्र" है और इसका वज़्न 21 होता है,देखियेगा ।

Comment by Dimple Sharma on September 7, 2020 at 4:39pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब, आपने अपना अनमोल समय देकर मेरा जो मार्गदर्शन किया है उसके लिए जितना आपका आभार व्यक्त किया जाए उतना कम है, जी आदरणीय मैं कोशिश करुंगी आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार करने की , आशीर्वाद और दया दृष्टि बनाए रखें।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2020 at 9:13pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

"अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3

   चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त"         ग़ज़ल में ज़बां की शाइस्तगी के ख़याल से ऊला यूँ कर सकते हैं : 

"अनपढ़ थी भोली-भाली समझी न इश्क़ मेरा" 

"सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4

उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त"          इस शैर के मिसरों में कोई रब्त नहीं है, देेखियेगा।

"होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5

 अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त"          इस शैर के सानी मिसरे में शिल्प सहीह नहीं है, यूँ कर सकते हैं :

"अब रद्दी बन रहे हैं वो उनके घर मेरे ख़त" 

"इनकार लिखना इतना आसाँ नहीं समझ ले/6

लिखता हूँ मन है भारी पल भर ठहर मेरे ख़त"      इस शैर के ऊला का शिल्प बहतर किया जाना चाहिए, यूँ कर सकते हैं :

"इनकार लिखना इतना आसान भी नहीं है" 

"रद्दी के भाव बिके थे ज़रुरत को आगे रखकर/7  इस शे'र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है 

अब काम आ रहे थे कुछ इस क़दर मेरे ख़त"        सानी मिसरे में 'अब' के साथ' थे' का मेल उचित नहीं है। 

"श्रृंगार कर लिया था आँखों ने उनकी ऐसा/8.     इस शे'र के दोनों ही मिसरों का शिल्प सहीह नहीं है, देखियेगा। 

 हँस हँस के पढ़ रहे थे उनके गुहर मेरे ख़त".        सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
17 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service