कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम
कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम
हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम
अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम
हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम
वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम
डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Samar Kabeer साहब , उस्ताद मोहतरम आदाब ,चरण स्पर्श , आपने तो शेर को बहुत उम्दा बना दिया , बहुत बहुत धन्यवाद आभार उस्ताद मोहतरम ! कृपा दृष्टि बनाए रखें।
//हमें मौत का अब नहीं ख़ौफ़ है
जला दे या दफ़ना दे बेख़ौफ़ हम//
ऊला अभी कमज़ोर है,यूँ कर सकती हैं:-
'हमें इसकी परवा नहीं है ज़रा'
बदल कर गलती से बंदर टाईप हो गया है क्षमा करें उस्ताद मोहतरम।
आदरणीय उस्ताद मोहतरम ,
चरण स्पर्श
अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम
इस शेर को बंदर कर यूं कर दिया है कृप्या एक बार देख लें
122, 122, 122, 12
हमें मौत का अब नहीं ख़ौफ़ है
जला दे या दफ़ना दे बेख़ौफ़ हम
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी नमस्ते , आपकी बातों से मैं शत् प्रतिशत सहमत हूं , उस्ताद मोहतरम के श्री चरणों में स्थान पाना मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है, एक शागिर्द को जब आदरणीय उस्ताद मोहतरम जैसा मार्गदर्शक मिल जाए तो उसका आधा काम तो यूं ही पूरा हो चुका होता है, धन्यवाद आदरणीय उस्ताद मोहतरम मुझे अपने श्री चरणों में स्थान देने के लिए।
आदरणीय उस्ताद मोहतरम Samar Kabeer साहब को प्रणाम चरण स्पर्श , मेरी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और समीक्षा मेरा सौभाग्य है , बहुत कुछ नया सीखने को मिला जिसका ज्ञान ये गलतियां नहीं करती तो कभी ना होता , जो कुछ नया सीखने को मिल रहा है इस मंच पर वो यक़ीनन और कहीं नहीं मिलता जिसके लिए मैं आपको जितना भी धन्यवाद कहूं या आभार व्यक्त करुं वो कम ही है ! यूं ही मार्गदर्शन करते रहें और दया दृष्टि बनाए रखें ।
आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम, सादर प्रणाम! आपके शाइरी के इल्म, शे'र की परख, ज़बान पे उबूर और पैनी नज़र को सलाम पेश करता हूँ। आधी शाइरी तो आपकी टिप्पणियाँ पढ़ कर आ जाती है। ग़ज़ल से सम्बंधित बुनियादी बातें पता होने के बावजूद हमें शे'र में वो ऐब दिखाई ही नहीं देते जो आप देख लेते हैं।
मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब रवि भसीन जी ने बहुत कुछ तो बता ही दिया है ।
'हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम'
एक बात तो ये कि इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,ऊला में 'मेरे' और सानी में "हम" शब्द के कारण,दूसरी बात ये कि दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला आप ख़ुद बदलने का प्रयास करें ।
'अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम'
इस शैर का ऊला यूँ कर लें तो दोनों मिसरों का रब्त और मज़बूत होगा:-
'गिरा साँप जब छत से देखा नहीं'
'हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कर सकती हैं:-
'बनाते रहे रेत का एक घर'
'वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कर सकती हैं:-
'वो जैसे भी चाहें हमें मार दें'
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी नमस्ते , सलाम,आदाब !आपका बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपने ग़ज़ल को इतनी बारीकी से पढ़ा और गलतियों तथा कमियों की और मेरा ध्यान बढ़ाया आपसे निवेदन है आप यूं ही आगे भी मार्गदर्शन करते रहें कृपा होगी! आपकी सलाह और मार्गदर्शन के लिए हृदय तल से आभार ! उस्ताद मोहतरम Samar Kabeer साहब की उपस्थिति और उनकी ग़ज़ल पर समीक्षा का मुझे भी इन्तजार रहता है , आप सभी गुणी जन यूं ही मार्गदर्शन करते रहें , आभार ।
आपका दिन बहुत खुबसूरत हो ,जय भारत।
आदरणीया डिम्पल शर्मा जी, आदाब। बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें। मुहतरमा, मतले के मिस्रा-ए-ऊला में शायद ग़लती से एक लफ़्ज़ छूट गया है, जिसके कारण वो बह्र से ख़ारिज हो रहा है:
122 / 122 / 122 / 12
कहा रुक जा सब ने 'थे' बेख़ौफ़ हम
आपसे गुज़ारिश है कि ग़ज़ल के साथ बह्र के अरकान ज़रूर लिखें, उससे गुणीजन और सीखने वाले दोनों को आसानी होती है। दो टंकण त्रुटियाँ दुरुस्त कर लीजिये, एक तो 'गाँव' और दूसरी 'रुक'
रूक - ये बड़े ऊ की मात्रा है (rook)
रुक - ये छोटे ऊ की मात्रा है (ruk)
आख़िरी शे'र में "वो पीछे से मारे" से शायद आपका मतलब है "उन्होंने पीछे से वार किया"। ये कुछ जगहों की colloquial language, यानी खड़ी बोली में इस्तेमाल होता होगा, लेकिन व्याकरण की दृष्टि से सहीह नहीं लग रहा। उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की टिप्पणी का इन्तेज़ार कीजियेगा। अगर मुनासिब समझें तो यूँ किया जा सकता है:
वो पीछे से मारें हुनर उनका है
वैसे ग़ज़ल की पेशकश में punctuation, यानी कौमा, पूर्ण विराम, या प्रश्न चिन्ह इस्तेमाल नहीं किये जाते। कुछ चीजें पढ़ने वालों पे छोड़ देनी चाहिए। सादर
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