For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम

कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम

हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम

अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम

हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम

वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 6:03pm

आदरणीय Samar Kabeer साहब , उस्ताद मोहतरम आदाब ,चरण स्पर्श , आपने तो शेर को बहुत उम्दा बना दिया , बहुत बहुत धन्यवाद आभार उस्ताद मोहतरम ! कृपा दृष्टि बनाए रखें।

Comment by Samar kabeer on June 10, 2020 at 12:04pm

//हमें मौत का अब नहीं ख़ौफ़ है
जला दे या दफ़ना दे बेख़ौफ़ हम//

ऊला अभी कमज़ोर है,यूँ कर सकती हैं:-

'हमें इसकी परवा नहीं है ज़रा'

Comment by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 3:22pm

बदल कर गलती से बंदर टाईप हो गया है क्षमा करें उस्ताद मोहतरम।

Comment by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 3:21pm

आदरणीय उस्ताद मोहतरम ,
चरण स्पर्श
अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम
इस शेर को बंदर कर यूं कर दिया है कृप्या एक बार देख लें

122, 122, 122, 12

हमें मौत का अब नहीं ख़ौफ़ है
जला दे या दफ़ना दे बेख़ौफ़ हम

Comment by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 3:03pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी नमस्ते , आपकी बातों से मैं शत् प्रतिशत सहमत हूं , उस्ताद मोहतरम के श्री चरणों में स्थान पाना मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है, एक शागिर्द को जब आदरणीय उस्ताद मोहतरम जैसा मार्गदर्शक मिल जाए तो उसका आधा काम तो यूं ही पूरा हो चुका होता है, धन्यवाद आदरणीय उस्ताद मोहतरम मुझे अपने श्री चरणों में स्थान देने के लिए।

Comment by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 2:53pm

आदरणीय उस्ताद मोहतरम Samar Kabeer साहब को प्रणाम चरण स्पर्श , मेरी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और समीक्षा मेरा सौभाग्य है , बहुत कुछ नया सीखने को मिला जिसका ज्ञान ये गलतियां नहीं करती तो कभी ना होता , जो कुछ नया सीखने को मिल रहा है इस मंच पर वो यक़ीनन और कहीं नहीं मिलता जिसके लिए मैं आपको जितना भी धन्यवाद कहूं या आभार व्यक्त करुं वो कम ही है ! यूं ही मार्गदर्शन करते रहें और दया दृष्टि बनाए रखें ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 9, 2020 at 12:46pm

आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम, सादर प्रणाम! आपके शाइरी के इल्म, शे'र की परख, ज़बान पे उबूर और पैनी नज़र को सलाम पेश करता हूँ। आधी शाइरी तो आपकी टिप्पणियाँ पढ़ कर आ जाती है। ग़ज़ल से सम्बंधित बुनियादी बातें पता होने के बावजूद हमें शे'र में वो ऐब दिखाई ही नहीं देते जो आप देख लेते हैं।

Comment by Samar kabeer on June 9, 2020 at 12:11pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब रवि भसीन जी ने बहुत कुछ तो बता ही दिया है ।

'हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम'

एक बात तो ये कि इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,ऊला में 'मेरे' और सानी में "हम" शब्द के कारण,दूसरी बात ये कि दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला आप ख़ुद बदलने का प्रयास करें ।

'अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा 
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम'

इस शैर का ऊला यूँ कर लें तो दोनों मिसरों का रब्त और मज़बूत होगा:-

'गिरा साँप जब छत से देखा नहीं'

'हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कर सकती हैं:-

'बनाते रहे रेत का एक घर'

'वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कर सकती हैं:-

'वो जैसे भी चाहें हमें मार दें'

Comment by Dimple Sharma on June 8, 2020 at 8:25am

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी नमस्ते , सलाम,आदाब !आपका बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपने ग़ज़ल को इतनी बारीकी से पढ़ा और गलतियों तथा कमियों की और मेरा ध्यान बढ़ाया आपसे निवेदन है आप यूं ही आगे भी मार्गदर्शन करते रहें कृपा होगी! आपकी सलाह और मार्गदर्शन के लिए हृदय तल से आभार ! उस्ताद मोहतरम Samar Kabeer साहब की उपस्थिति और उनकी ग़ज़ल पर समीक्षा का मुझे भी इन्तजार रहता है , आप सभी गुणी जन यूं ही मार्गदर्शन करते रहें , आभार ।
आपका दिन बहुत खुबसूरत हो ,जय भारत।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 7, 2020 at 6:04pm

आदरणीया डिम्पल शर्मा जी, आदाब। बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें। मुहतरमा, मतले के मिस्रा-ए-ऊला में शायद ग़लती से एक लफ़्ज़ छूट गया है, जिसके कारण वो बह्र से ख़ारिज हो रहा है:
122 / 122 / 122 / 12
कहा रुक जा सब ने 'थे' बेख़ौफ़ हम

आपसे गुज़ारिश है कि ग़ज़ल के साथ बह्र के अरकान ज़रूर लिखें, उससे गुणीजन और सीखने वाले दोनों को आसानी होती है। दो टंकण त्रुटियाँ दुरुस्त कर लीजिये, एक तो 'गाँव' और दूसरी 'रुक'
रूक - ये बड़े ऊ की मात्रा है (rook)
रुक - ये छोटे ऊ की मात्रा है (ruk)

आख़िरी शे'र में "वो पीछे से मारे" से शायद आपका मतलब है "उन्होंने पीछे से वार किया"। ये कुछ जगहों की colloquial language, यानी खड़ी बोली में इस्तेमाल होता होगा, लेकिन व्याकरण की दृष्टि से सहीह नहीं लग रहा। उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की टिप्पणी का इन्तेज़ार कीजियेगा। अगर मुनासिब समझें तो यूँ किया जा सकता है:
वो पीछे से मारें हुनर उनका है

वैसे ग़ज़ल की पेशकश में punctuation, यानी कौमा, पूर्ण विराम, या प्रश्न चिन्ह इस्तेमाल नहीं किये जाते। कुछ चीजें पढ़ने वालों पे छोड़ देनी चाहिए। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service