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यथार्थ  दोहे :

देह जली शमशान में, सारे रिश्ते तोड़।
राहें तकती रह गईं,अंत चला सब छोड़।।1

अंत मिला बेअंत में, हुई जीव की भोर।
भौतिक तृष्णा मिट गई,मिटे व्यर्थ के शोर।।2

व्यर्थ देह से नेह है, व्यर्थ देह अभिमान।
तोड़ देह प्राचीर को,उड़ जाएंगे प्रान।।3

थोड़ी- थोड़ी रैन है, थोड़ी-थोड़ी भोर।
थोड़ी सी है ज़िंदगी, थोड़ा सा है शोर ।।4

कितना टाला आ गई, देखो आखिर मौत।
ज़ालिम होती है बड़ी, साँसों की ये सौत ।।5

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on June 19, 2020 at 9:20pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2020 at 9:19pm

परम आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... सर सृजन के भावों को अपनी अनमोल प्रतिक्रिया से समृद्ध करने के लिए दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on June 19, 2020 at 4:01pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2020 at 8:56am

 “ राहें तकती रह गईं,अंत चला सब छोड़।”
वाह , बहुत सुन्दर दोहे , आदरणीय सुशील सरना जी , बधाई इस सशक्त रचना पर , सादर।  

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