भूल कर सब प्रेम करुणा त्याग तप बलिदान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा
राम सा आदर्श मानव औ' भरत सा भ्रात मैं हूँ
दुश्मनों के वक्ष पर करता रहा आघात मैं हूँ
मैं प्रतिज्ञा भीष्म की हूँ, मैं युधिष्ठिर धर्मकारी
पार्थ का गांडीव मैं हूँ, मैं सुदर्शन चक्र-धारी
शौर्य है श्रृंगार मेरा, रण-विजय ही गान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
भूमिका मेरी यहाँ बेटा, पिता, पति, भ्रात की है
माप रखता जो हमेशा अनकही हर बात की है
दीप हूँ मां-बाप का मैं, गर्व का आधार भी हूँ
आँधियों को रोकने वाली अटल दीवार भी हूँ।
बीच झंझावात के जीवन नहीं आसान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
बेटियों की डोलियों का भार भी मैं ही उठाता
मुश्किलों केे बाद भी उनकी खुशी मैं ढूँढ़ लाता
हाथ कंगन पाँव बिछिया नाक नथिया से सजा कर
मैं विदा करता सुता को अश्रुधारा में छिपाकर
उस विदाई के समय पर दर्द ही अनुदान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
प्रेम में विश्वास ख़ातिर चाँद तारे तोड़ लाऊँ
छंद कविता अरु ग़ज़ल की धार सारी मोड़ लाऊँ
रंग हूँ सिंदूर का मैं, गर्व हूँ अर्धांगिनी का
साज के स्वर का मैं गुंजन, राग हूँ मैं रागिनी का
सात वचनों की शपथ का हर वचन है प्रान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
मैं पिता के रूप में हूँ, मैं सखा के रूप में भी
बाल बच्चों के लिए तपता हूँ भीषण धूप में भी
मूल्य हूँ श्रृंगार हूँ प्यारी बहन की राखियों का
मैं सहारा हूँ बुढ़ापे की कई बैसाखियों का
स्वप्न पूरे पुत्र के हों ये हि गंगा स्नान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
वासना का वास जिसमें वो अधम इंसान कैसा
नीचता जिसमें भरी हो उस मनुज का मान कैसा
इसलिए ऐसे अधम का पाप अपने नाम क्यों लूँ
बिन मिटाए राक्षसों को मैं भला आराम क्यों लूँ
मैं सुयश पथ पर चलूँ जग हित रहे हर ज्ञान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
वाह बड़ा ही स्फूर्ति भरा गीत i सुरेन्द्र जी आपको बधाई I
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, आदाब।
लाजवाब गीत के लिए बहुत बहुत धन्यावाद और बधाईयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी बहुत अच्छा गीत लिखा आपने पुरुुुुष को एक अलग तरीके से व्याख्या करते हुए आपने उसे शब्द दिये है बहुत बहुत बधाई स्वीकार करेें ।
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