मापनी 22 22 22 22
पंछी को अब ठाँव नहीं है,
पीपल वाला गाँव नहीं है.
दिखते हैं कुछ पेड़ मगर,
उनके नीचे छाँव नहीं है.
लाती जो पिय का संदेशा,
कागा की वह काँव नहीं है
मुश्किल है कैसे सँभलोगे,
यदि जमीन पर पाँव नहीं है.
राह प्रेम की सीधी -सादी,
चलता उल्टा दॉंव नहीं है.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'दिखते हैं कुछ पेड़ मगर'
ये मिसरा बह्र में नहीं देखिये ।
'यदि जमीन पर पाँव नहीं है'
इस मिसरे में 'ज़मीन' की जगह "धरती" शब्द उचित होगा ।
'राह प्रेम की सीधी -सादी'
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
'प्रेम का रस्ता सीधा सादा'
पारिवारिक कारणों से कुछ समय ओबीओ पर हाज़िर नहीं हो सकूँगा,सिर्फ़ तरही मुशाइर: में शिर्कत होगी,अगर आपको कहीं मेरी ज़रूरत महसूस हो तो फ़ोन पर सम्पर्क कर सकते हैं ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार - आपकी हौसलाअफजाई को सादर नमन
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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