मापनी 2122 1212 22/112
दोस्त जो आसपास बैठे हैं,
जाने क्यों सब उदास बैठे हैं
सोचते हैं कि कोई आएगा,
ले के खाली गिलास बैठे हैं.
फिर से दरबार सज गया उनका,
लोग सब ख़ास ख़ास बैठे हैं.
कोई यूँ ही तो मिल नहीं सकता,
द्वार पर उनके दास बैठे हैं.
कौन बाँचेगा प्रेम की पाती
मौन सब कालिदास बैठे हैं.
आज क्यों सब निकालने के लिए,
दिल में रख के भड़ास बैठे हैं.
फूल से दुश्मनी निभाने को
ले के वो चंद्रहास बैठे हैं
Comment
आदरणीय Shyam Narain Verma जी सादर नमस्कार , आपकी हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया
हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी ।बहुत बढ़िया गज़ल।
दोस्त जो आसपास बैठे हैं,
जाने क्यों सब उदास बैठे हैं
सोचते हैं कि कोई आएगा,
ले के खाली गिलास बैठे हैं.
भाई बसंत कुमार शर्मा जी.
कौन बांचेगा प्रेम की पाती,मौन सब कालिदास बैठे हैं.।
बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'लोग सब ख़ास ख़ास बैठे हैं'
इस मिसरे में उर्दू के हिसाब से क़ाफ़िया ग़लत है,देखियेगा ।
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