2122 1122 1122 22
हाँ में हाँ लोग जो होते हैं मिलाने वाले
हैं पस-ए पुश्त मियाँ ज़ुल्म वो ढाने वाले
अपने चहरे के उन्हें दाग़ नज़र आ जाते
देखते ख़ुद को जो आईना दिखाने वाले
पाप धुलते नहीं इस तरह बता दो उनको
हैं जो कुछ लोग ये गंगा में नहाने वाले
हो क़फ़स लाख वो फ़ौलाद का लेकिन यारो
रोक सकता नहीं उनको जो हैं जाने वाले
आपसे वादा निभाएँगे भला वो कैसे
वादा ख़ुद का न कभी ख़ुद से निभाने वाले
आप मानें या न माने प हक़ीक़त है यही
भूक़े भी सोते हैं ख़ुद अन्न उगाने वाले
डाल कर आग में घी अपना मज़ा लेते हैं
'नाथ' हैं दो को जो ये चार बताने वाले
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आपको बहुत मुबारकबाद! मतला तो लाजवाब है। जनाब, मक़ते के सानी में कोई शब्द (शायद 'वो') ग़लती से छूट गया है।
सुरेन्द्र नाथ सिंह, कुशक्षत्रप !
कमाल-धमाल, जनाब, क्या खूबसूरत और असरदार ग़ज़ल कही है आपनेसुरेन्द्र नाथ सिंह क्षत्रप, बधाई !
ग़ज़ब कर डाला, जनाब, क्या असरदार और खूबसूरत ग़़ज़ल हुई,सुरेन्द्र नाथ सिंह क्षत्रप, बधाई !
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