For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लिव इन

सोनल और विकास शुरू से ही साथ पढ़े थे । दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी । ये दोस्ती कब प्यार में बदल गयी किसी को पता ही नहीं चला । रिद्धिमा और मनोज भी इन दोनों के दोस्त थे । कॉलेज में ये चारो हमेशा साथ साथ रहते थे । पढ़ाई पूरी करने के बाद रिद्धिमा और मनोज ने शादी कर ली । दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी बहुत खुशहाल थी । सोनल शुरू से ही आज़ाद ख्यालों वाली लड़की थी । उसे ज़िम्मेदरियों में बंधकर रहना बिलकुल पसंद नहीं था। संयोगवश सोनल और विकास को मुंबई में नौकरी मिल गई। अब विकास के घर वाले भी उससे शादी के बारे में कहने लगे। विकास जब भी सोनल से शादी के बारे में बात करता वो हमेशा उसे मॉडर्न बनने को कह देती। आखिरकार दोनों लिव इन में रहने लगे। दोनों अपनी इस छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थे। एक दो साल तो दोनों बहुत खुश थे , परन्तु धीरे धीरे उन्हें अपनी ज़िंदगी नीरस सी लगने लगी। उधर मनोज और रिद्धिमा के दो बच्चे थे।ये दोनों उनके घर जाते तो उनका भरा पूरा परिवार देखकर बहुत खुश होते। सोनल उनके बच्चों के साथ खूब खेलती। कई बार तो वो वहां रात को भी रुक जाती। अब उसे भी ये लगने लगा की उनके घर भी बच्चों की किलकारी गूंजे , जिससे उनकी नीरस ज़िंदगी में भी बहार आ जाए। जब उसने इस बारे में विकास से बात की तो उसने साफ़ मना कर दिया । उसने कहा कि " मै अपने माता-पिता के खिलाफ नहीं जा सकता ।" इसी बात को लेकर दोनों में तना - तनी रहने लगी । दोनों अब अलग - अलग रहने लगे। इधर विकास की मां उसपर शादी के लिए दबाव डालने लगी क्योंकि अब विकास के सभी भाई बहनों की शादी हो चुकी थी । एक दिन अचानक विकास के घर से फोन आया कि उसकी मां की तबीयत बहुत खराब है ।
विकास अपनी माँ को देखने अपने घर आ गया । "बेटा आ गया तू " उसे देखते ही उसकी मां भावुक
होकर बोली और रोने लगी " इस बार तेरी शादी किए बिना तुझे मुम्बई नही जाने दूंगी " माँ अपना नकली गुस्सा दिखाते हुए बोली। " ठीक है माँ ! पहले आप ठीक हो जाओ , उसके बाद जैसा आप कहोगे मैं वैसा ही करुंगा। " ये सुनते ही माँ की जान में जान आ गई ।
अब तो विकास को पक्का पता था कि उसे शादी करनी ही पड़ेगी । इसके सिवा और कोई चारा भी तो नहीं था । अब विकास ने सोचा कि " एक बार सोनल से बात करता हूँ
। " विकास ने सोनल को फोन किया और कहा कि " मुझसे शादी करोगी ? " ये बात सुनते ही सोनल बहुत भावुक हो गई , क्योंकि वो अब खुद भी यही चाहती थी। वो अब तक थक चुकी थी अकेले रहते रहते । उसने शादी के लिए हां कर दी ।
दोनों के परिवार एक दूसरे को जानते थे सो उन्होंने दोनों की शादी करवा दी । घर में खुशी का माहौल था और सोनल ने आज पहली रसोई बनाई थी। सभी एक साथ खाना खा रहे थे । विकास के घर के सभी सदस्यों में बहुत उत्साह था । " मामी को मैं खिलाउंगी" एक बच्ची बोली तभी दूसरे बच्चे ने कहा कि नहीं " चाचीजी तो मेरे हाथ से खाएंगी " तभी सोनल की ननद कहती हैं कि " भाभी को तंग मत करो ।" विकास की मां ने उसे अपने कुछ पुश्तैनी गहने दिये और कहा "बहू इसे कल मुहं दिखाई के वक्त पहनना"ये सब देख सोनल ने विकास से कहा कि " मुझे माफ कर दो , मैं कितनी मूर्ख थी जो पाश्चात्य संस्कृति के पीछे भाग रही थी और विवाह जैसे पवित्र बंधन को बोझ समझ रही थी , अगर हम शादी ना करते तो मैं इन प्यारे रिश्तों को कभी भी समझ नहीं पाती "ये सब बातें करते हुए उसकी आंखे भर आईं । तब विकास ने कहा "देर आए दुरुस्त आए " और दोनों हंस पड़े ।

मौलिक व अप्रकाशित। 

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madhu Passi 'महक' on July 25, 2020 at 12:42pm
जी रवि भसीन ' शाहिद ' जी नमस्कार। मुझे इस मंच के बारे में बताने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, इसके लिए मैं सदैव आपकी आभारी रहूंगी। आपको मेरी पहली रचना पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत आभार ।
Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 24, 2020 at 1:42pm

आदरणीया Madhu Passi 'महक' साहिबा, नमस्कार। ओबीओ के मंच पर आपका बहुत स्वागत है। आपकी इस पहली प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई, आपकी लघुकथा बहुत रोचक और अर्थपूर्ण लगी। शुभकामनाओं सहित सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर, इस पोस्ट की बहुत ज़रूरत थी। आपका हार्दिक आभार जो आपने स्पष्ट शब्दों में…"
48 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय तिलकराज कपूर सर, ओबीओ की मूल भावना को शब्द देने के लि हार्दिक आभार। वाकई एक व्यक्ति विशेष ने…"
50 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सभी सदस्यों को यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि यह पटल एक व्यवस्था है, व्यक्ति नहीं और किसी…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale posted a blog post

मनहरण घनाक्षरी

रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।वंश  के  विराट…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा षष्ठक. . . . आतंक

दोहा षष्ठक. . . .  आतंकवहशी दरिन्दे क्या जानें , क्या होता सिन्दूर ।जिसे मिटाया था किसी ,  आँखों का…See More
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"स्वागतम"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a discussion

पटल पर सदस्य-विशेष का भाषयी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178 के आयोजन के क्रम में विषय से परे कुछ ऐसे बिन्दुओं को लेकर हुई…See More
11 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service