For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है....)

1222 1222 122

यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है
चलो भी गाँव में मेला लगा है

तुझे मैं आज पढ़ना चाहता हूँ
मिरी तक़दीर में अब क्या लिखा है

किनारे पर भी आकर डूब जाओ
नदी है,नाख़ुदा तो बह चुका है

निकलना चाहता है मुझसे आगे
मिरा साया मिरे पीछे पड़ा है

ज़रा आगे चलूँ या लौट जाऊँ
गली के मोड़ पर फिर मैक़दा है

उसी पर मर रहे हैं लोग सारे
जो अपने आप पर कब से फ़िदा है

सितारों चैन से सोने मुझे दो
फ़लक पर आज भी क्या रतजगा है?

उसे ही ढूँढती हैं मंज़िलें भी

मुसाफ़िर जो कहीं भटका हुआ है

(मौलिक एवं अप्रकाशित.)

Views: 994

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on July 30, 2020 at 10:45am

मुहतरमा डिंपल शर्मा जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 8:44am

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते,इस नई जानकारी के लिए बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, मुझे भी मना ही सही लगता था पर अब आगे से मना की जगह में भी मनअ का ही इस्तेमाल करुंगी आदरणीय, बहुत आभार आपका इस नई जानकारी के लिए।

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 8:41am

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, वाह वाह वाह बहुत ख़ूब आदरणीय कमाल, ग़ज़ल के तीसरा ,चौथा,छठा और सातवां शेर तो बहुत ही उम्दा हुए हैं बधाई स्वीकार करें आदरणीय, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है।

Comment by सालिक गणवीर on July 29, 2020 at 3:42pm

आदरणीय रवि भसीन साहब

सादर नमस्कार

ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है जनाब.सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार. उम्मीद है आपका स्नेह और मार्ग दर्शन सतत मिलता रहेगा. आपसे इन्सपायर होकर ही एक ग़ज़ल पोस्ट की है.Waiting for approval,as soon as it is cleared please have a look .

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 29, 2020 at 2:52pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस्कार! हुज़ूर आप जो इतनी इज़्ज़त और मुहब्बत देते हैं उसके लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। और भाई जान, जब एक दूसरे के साथ सलाह-मशवरा कर रहे हैं तो सुझाए हुए मिस्रे या अशआर लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। Intellectual property वाली कोई बात नहीं है जनाब, क्यूँकि दोनों ही अशआर आपके शेर से प्रेरित थे (रो रहे हैं, मातम हुआ है)। फिर भी मैं आपके इस जज़्बे की क़द्र करता हूँ। बहरहाल, आपका ये मक़ता बहुत ज़बरदस्त है। आपको इस ग़ज़ल के लिए एक बार फिर दिली मुबारकबाद!

Comment by सालिक गणवीर on July 29, 2020 at 11:40am

आदरणीय भसीन साहिब

आदाब

जनाब मैने पहले भी कहा है कि आपकी कलम का मुरीद हूँ, तो आपकी बात पर अविश्वास करने का सवाल ही पैैैदा नहीं होता. आपके दोनो अश'आर बहुत उम्दा हैं,sir,it is your inttallatual property.पुरानी ग़ज़ल का एक शैर  लिख कर पुनः पोस्ट कर रहा हूँ. साथ ही साथ आपकी ग़ज़ल पढ़कर ,मैं भी एक पोस्ट कर रहा हूँ.पढ़ कर बताइये और 

इस्सलाह दें

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 28, 2020 at 12:34pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आदाब। हुज़ूर वो अशआर इसलिए उदाहरण के तौर पे पेश किये थे क्यूँकि बचपन से हम 'मना' सुनते, पढ़ते और लिखते आये हैं, तो अचानक अगर एक दिन कोई बताए कि ये शब्द मना नहीं बल्कि मनअ' है तो विश्वास करना मुश्किल हो जाता है, चाहे बताने वाले का हम कितना भी एहतराम क्यों ना करते हों। फिर ये भी सोचा कि और लोग जो इन टिप्पणियों को पढ़ेंगे उनके लिए भी समझना आसान हो जाएगा। जनाब-ए-आ'ली आख़िरी शे'र के लिए ये दो मशवरे हैं:

1222 / 1222 / 122
सुनाई दे रही हैं सिसकियाँ बस
यहाँ रोने पे क्यूँ पहरा लगा है

1222 / 1222 / 122
हमें रोने कहाँ देती है खुल कर
ये शहरों में जो मातम की फ़ज़ा है

/आप अपने आख़िरी शे'र में आसानी से अल्फ़ाज़ इधर-उधर करके मनअ' को 21 के वज़्न में ला सकते हैं।/

जी ये मैंने ग़लत लिखा था, माज़रत चाहता हूँ। शायद रदीफ़ या क़ाफिये को लेकर confuse हो गया हूँगा।

Comment by सालिक गणवीर on July 28, 2020 at 10:45am

आदरणीय भसीन साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ. जनाब बेहतर होता आप मनअ' का वज़्न बता देते तो आपको जस्टिफाई करने के लिए इतने सारे उदाहरण नहीं देने पड़ते.जनाब आपकी भाषा पर पकड़ का मैं पहले से ही मुरीद हूूँ. //हमारे गाँँव मेें सब रो रहे हैं, तुम्हारे शह्र मेेंं मातम हुआ है// आखिरी शैर बदल कर ऐसा लिखने से बाात बनेगी या नहीं, सलाह दें.सादर.

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 27, 2020 at 5:01pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, लाजवाब ग़ज़ल हुई है हुज़ूर, बधाई स्वीकार करें। 4, 5, और 6 नंबर अशआर पर विशेष दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।

जनाब-ए-आ'ली, आख़िरी शेर में जो आपने 'मना' शब्द इस्तेमाल किया है, वो दरअस्ल 'मनअ' है और वज़्न 21 पे इस्तेमाल किया जाता है। कृप्या ये अशआर देखें:

221  /  2121  /  1221  /  212
गर मनअ' मुझ को करते हैं तेरी गली से लोग
क्यूँकर न जाऊँ मुझ को तो मरना है ख़्वा-मख़्वाह
(मीर तक़ी मीर)

221  /  1221  /  1221  /  122
करता है हमें मनअ' तू पैमाना-कशी से
पैमाना तिरी उम्र का मामूर हो ऐ शैख़
(मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी)

2122  /  1122  /  1122  /  22 (112)
घर से बाहर तुम्हें आना है अगर मनअ' तो आप
अपने कोठे पे कबूतर तो उड़ा सकते हैं
(इंशा अल्लाह ख़ान इंशा)

2122  /  1212  /  22
इश्क़ से लोग मनअ' करते हैं
जैसे कुछ इख़्तियार है अपना
(असर लखनवी)

2122  /  1122  /  1122  /  22
फ़रहत-एहसास तुझे मनअ' है जाना उस तक
क्या तिरे ख़ून के धारे भी नहीं जा सकते
(फ़रहत एहसास)

वैसे 'मना' 12 भी शब्द तो है, लेकिन ये "किसी को मना लेना" (मतलब राज़ी कर लेना) वाले अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे:
1222  /  1222  /  122
कि उस का रूठना भी लाज़मी है
मना लूँगा अगर होगा ख़फ़ा तो
(नज़ीर नज़र)

आप अपने आख़िरी शे'र में आसानी से अल्फ़ाज़ इधर-उधर करके मनअ' को 21 के वज़्न में ला सकते हैं।

Comment by सालिक गणवीर on July 27, 2020 at 3:18pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service