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मोहब्बत क्या है .......

मोहब्बत क्या है .......


तुम समझे ही नहीं
मोहब्बत क्या है
मेरी तरह
कुछ लम्हे
तन्हा जी कर देखो
दीवारों पर अहसासों के अक्स
रक्स करते नज़र आएंगे
दर्द के सैलाब
आखों में उतर आएंगे
लबों के साहिल पर
अलफ़ाज़ कसमसायेंगे
अंधेरों के कहकहे
रूह तक पसर जाएंगे
तब तुम जानोगे
मोहब्बत क्या है
उलझी लटों को सुलझाना
मोहब्बत नहीं है
ज़िस्मानी गलियों से गुजर जाना
मोहब्बत नहीं है
हिर्सो-हवस के पैराहन
पहने रहना
मोहब्बत नहीं है
तन्हाईयों की नोकों को
आज़ा में महसूस करना
शायद
मोहब्बत की इन्तिहा है
चलते हुए वक़्त का
ठिठुर कर ठहर जाना
चश्म से
दर्द के चश्मे का उबल कर
रुखसारों पर ठहर जाना
शायद
मोहब्बत है
सच
तुम नहीं जानते
मोहब्बत क्या है
तुम सिर्फ़ जिस्म को मोहब्बत का
मक़ाम समझते रहे
तुम्हारी की रूह के लम्स
मेरी रूह को छू भी नहीं पाए
रूहानी मोहब्बत के अलफ़ाज़
तुम समझ ही नहीं पाए
वरना मेरी आँखों में
मोहब्बत की नमी न होती
मेरी ज़बीं में
तुम्हारी कमी न होती
तुम समझे ही नहीं
मोहब्बत क्या है
(आज़ा=शरीर के अंग )


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 304

Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 12, 2020 at 1:24pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 9:57am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

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