एक दिन ,
भावनाओ की पोटली बांध
निकल पड़ी घर से ,
सोचा,
समुद्र की गहराईयों में दफ़न कर दूंगी इन्हें ..
कमबख्तों की वजह से ..
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ ..
फेक भी आई उन्हें ..
दूर , बहुत दूर
पर ये लहरें भी 'न' .--
कहाँ मेरा कहा मानती हैं ..
हर लहर ....
उसे उठा कर किनारे पर पटक जाती ,
और वो दुष्ट पोटली ..
दौड़ती भागती मेरे ही कदमो में आ रूकती …
उठा ले आई उसे, ये 'सोच कर '
कल फिर आउंगी , और फेंक दूंगी उन्हें
दूर 'बहुत दूर' .....
Comment
समुद्र की गहराईयों में दफ़न कर दूंगी इन्हें ..
कमबख्तों की वजह से ..
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ ..
khubsurat lajabab"हर लहर ....
उसे उठा कर किनारे पर पटक जाती,
और वो दुष्ट पोटली ..
दौड़ती भागती मेरे ही कदमो में आ रूकती
क्या बात कही है आपने ! भावनाएँ ही तो इन्सानियत की धरोहर हैं । बहुत बढ़िया ।
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