For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धुआँ उठता नहीं कुछ जल रहा है..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

1222 1222 122

धुआँ उठता नहीं कुछ जल रहा है
मुझे वो आग बन कर छल रहा है

पिछड़ जाउंँगा मैं ठहरा कहीं गर
ज़माना मुझसे आगे चल रहा है

बहुत ख़ुश था मैं तन्हाई में पर अब
ये सूनापन मुुझे क्यों खल रहा है

अंधेरे में उसे दिखता मैं कैसे
मगर फिर भी वो आँखें मल रहा है

बड़ा होकर दुखों में छाँव देगा
जो ये पौधा ख़ुशी का पल रहा है

निगल जाएगा मुझको भी अँधेरा
ये सूरज ज़िंदगी का ढल रहा है

पिघल जाएँगी चट्टानें दुखों की
हिमालय भी तो यारों गल रहा है

सुधारेगा उसे अब कौन यारो
वही जो उम्रभर अड़ियल रहा है

न था वो बज़्म में रौनक नहीं थी
वो है मौजूद तो क्यों खल रहा है

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 24, 2020 at 9:32pm

मुहतरम जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, आपके ख़ुलूस और मुहब्बत का बहुत शुक्रिया। उस्ताद मुहतरम की इस्लाह वाक़ई  बहतरीन है। मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि आप जैसे रौशन ज़मीर शख़्स ओ बी ओ की शान बढ़ा रहे हैं। सलामत रहें। 

Comment by सालिक गणवीर on September 24, 2020 at 4:52pm

उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिये हृदयतल से आभार. क़ीमती इस्लाह के लिए मश्कूर-ओ-ममनून. सलामत रहें.

Comment by सालिक गणवीर on September 24, 2020 at 4:48pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब

ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफजाई के लिए तह-ए-दिल से ममनून हूँ. आपके सुझाव प्रशंसनीय हैं मगर उस्ताद-ए-मुहतरम की इस्लाह पर अमल नहीं करना ठीक नहीं होगा. आपने नाचीज़ की ग़ज़ल पर मश्क  किया, उसके लिए शुक्रिय:

Comment by सालिक गणवीर on September 24, 2020 at 4:42pm

आदरणीय भाई बसंत कुमार शर्मा जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.

Comment by Samar kabeer on September 23, 2020 at 3:28pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'धुआँ उठता नहीं कुछ जल रहा है
मुझे वो आग बन कर छल रहा है'

मतला और बहतर करने का प्रयास करें ।

'कभी तनहाइयों में शादमाँ था
ये सूनापन अभी क्यों खल रहा है'

इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'बहुत ख़ुश था मैं तन्हाई में पर अब

ये सूना पन मुझे क्यों खल रहा है'

'बड़ा होकर दुखों की छाँव देगा
शजर नन्हा है दिल में पल रहा है'

इस शैर को उचित लगे तो यूँ कर लें:-

'बड़ा होकर दुखों में छाँव देगा

जो ये पौधा ख़ुशी का पल रहा है'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 22, 2020 at 12:18am

आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

चन्द अश'आ़र में सुधार की गुंजाइश है अगर आप मुनासिब समझें तो :

"कभी तनहाइयाँ भी शादमाँ थीं         कभी तन्हाइयों में भी थे ख़ुश हम

ये सूनापन अभी क्यों खल रहा है"     अकेलापन ये अब क्यों खल रहा है 

"अंधेरे में उसे दिखता मैं कैसे            अँधेरा है नहीं वो देख पाया 

मगर फिर भी वो आँखें मल रहा है"    मगर ठहरो वो आँखें मल रहा है   

"बड़ा होकर दुखों की छाँव देगा

शजर नन्हा है दिल में पल रहा है"      अभी पौधा है दिल में पल रहा है     क्योंकि नन्हा शजर नहीं कह सकते।    सादर। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 21, 2020 at 7:31pm

आदरणीय  सालिक गणवीर जी सादर नमस्कार 

बहुत खुबसूरत गजल हुई है 

बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
13 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service