ख़ामोश दो किनारे ....
बरसों के बाद
हम मिले भी तो किसी अजनबी की तरह
हमारे बीच का मौन
जैसे किसी अपराधबोध से ग्रसित
रिश्ते का प्रतिनिधित्व कर रहा हो
ख़ामोशी के एक किनारे पर तुम
सिर को झुकाये खड़ी हो
और
दूसरे किनारे पर मैं
मौन का वरण किये खड़ा हूँ
क्या कभी मिट पाएँगे
हम दोनों के मिलन में अवरोधक
ख़ामोशी के
ख़ामोश दो किनारे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जबरजस्त भावों को समेटे हुए...बेहतरीन कविता आदरणीय ।
आदरणीय Samar kabeer जी, आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ख़ूब आदरणीय जनाब सुशील सरना जी शानदार जज़्बात निगारी हुई है दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
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