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1

लगा के ठोकर वो पूछते हैं उठा के सर क्या चला करेंगे

पलट दी बाजी ये कह के हमने ख़ुदा के दम पर बढ़ा करेंगे

2

सजा के महफ़िल मेरी तबाही की पूछते हैं कि क्या करेंगे

सँभाले मिज़्गाँ प अश्क़ हमने कहा सनम अब जफ़ा करेंगे

3

उदास रातों में सर्द रिश्तों की उलझनों को परे हटाकर

नरम गुलाबी सी ऊन पर हम हज़ार सपने बुना करेंगे

4

हज़ार नाले हों जिंदगी के सिसक के चाहे गुज़र रही हो

मगर ख़यालों में ख़्वाहिशों के लगा के पर हम उड़ा करेंगे

5

जला के रक्खा चराग़ दिल में जहाँ  मुहब्बत धड़क रही है

 है और थोड़ी उमीद ज़िन्दा इसी के दम पर जिया करेंगे

6

बिखरती किरणें उमीद की कह रहीं हैं हमदम न उजड़ा कुछ भी

तुम्हारी मेहनत के आब से ही हज़ाराँ गुलशन खिला करेंगे

7

फ़िराक़ में ये मुहीब रातें ये ग़म के बादल ये बेक़रारी 

तुम्हें हमारे दरीदा-दिल का पयाम 'निर्मल' दिया करेंगे

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 3, 2020 at 8:49pm

बहुत बढ़िया आदरणीया रचना जी...आदरणीय समर साहब की इस्लाह शानदार है।

Comment by Rachna Bhatia on November 3, 2020 at 8:32pm

आदरणीय समर कबीर सर् ग़ज़ल की इस्लाह करने के लिए बेहद शुक्रिय:। सर् सभी कमियाँ ठीक करके दिखाती हूँ । सादर।

Comment by Samar kabeer on November 3, 2020 at 12:01pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'लगा के ठोकर वो पूछते हैं उठा के सर क्या चला करेंगे

पलट दी बाजी ये कह के हमने ख़ुदा के दम पर बढ़ा करेंगे'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला सुधारने का प्रयास करें,ऊला में रदीफ़ 'करेंगे' की जगह "करोगे" हो रही है ।

'सजा के महफ़िल मेरी तबाही की पूछते हैं कि क्या करेंगे'

इस मिसरे में शुतर गुरबा दोष देखें ।

'नरम गुलाबी सी ऊन पर हम हज़ार सपने बुना करेंगे'

इस मिसरे में सहीह शब्द "नर्म"21 है,देखियेगा ।

'जला के रक्खा चराग़ दिल में जहाँ  मुहब्बत धड़क रही है

 है और थोड़ी उमीद ज़िन्दा इसी के दम पर जिया करेंगे'

इस शैर को यूँ कहें:-

'जला रखा है चराग़ हमने जहाँ महब्बत धड़क रही है

जो आस थोड़ी है दिल में ज़िंदा उसी के दम पर जिया करेंगे'

'तुम्हारी मेहनत के आब से ही हज़ाराँ गुलशन खिला करेंगे'

इस मिसरे में 'हज़ाराँ' को "हज़ारों" कर लें ।

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