" माँ,रोटी पर मक्खन तो रखा नहीं।हाँ,देती हूँ।"
बेटे की रोटी पर मक्खन रखते हुए अचानक बर्तन माँजती बारह साल की बेटी छुटकी को देख सुधा के हाथ पल को ठिठके और फिर चलने लगे।वापसी में छुटकी की पीठ थपथपा काम में लग गई ।
माँ बेटी अभी थाली लेकर बैठीं थी कि पति की आवाज़ आई,
" कहां हो?पानी तो पिलाओ।खाने का कोई समय है कि नहीं जब तब थाली लिए बैठ जाती हो।यही छुटकी सीख रही है।"
पिता की आवाज़ सुनते ही छुटकी ने जल्दी से थाली वापिस सरका दी।
सुधा ने भी जवाब के लिए तैयार होठों को चुप करा दिया।
" माँ, कल परीक्षा है,पढ़ लेती हूँ।"
" ठीक है बिटिया,कलम कागज़ है न।हां माँ, भाई की पुरानी कलम है मेरे पास।
सुधा ने फिर एक बार दिल से आती दस्तक से मुँह फेर लिया।
देर रात काम खत्म करके लेटी ही थी कि पति शुरू होगए।" मंहगाई बहुत बढ़ गई है।थोडा़ खर्चा कम करो।तेल क्रीम बंद करो।"
आंखों के गुस्से को जल्दी से आँसुओं से छिपा लिया।सुबह छुटकी को स्कूल जाते देख पति बोले,
"पेपरों के बाद घर बैठ,फालतू फीस...दहेज़ भी जोड़ना है।"
"छुटकी को घर के सारे काम सिखाओ।"
इस बार सुधा दिल से आती दस्तक रोक नहीं पाई।तेज आवाज़ के साथ सब दरवाजे खुल गए।
"छुटकी सरकारी स्कूल में पढ़ती है ,कोई खर्चा नहीं है।यह स्कूल जाएगी।अगर मजबूरी हुई तो सूरज को सरकारी स्कूल में डाल देंगें।मैं भी नौकरी कर सकती हूँ।दोनों ही बच्चे पढेंगें"
।छुटकी सालों से बंद दरवाजे को भड़कभडा कर खुलता देख हैरान थी।
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सुधार करने का प्रयास करती हूँ। हौसला बढ़ाने के लिए आपका आभार।
अच्छी लघु कथा है आदरणीया लेकिन इस शानदार विषय के साथ थोड़ी कसावट की जरुरत और प्रतीत होती है।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
जनाब तेजवीर सिंह जी से सहमत हूँ ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।जी सही कहा आपने। आगे से ध्यान रखूँगी।
बेहद शुक्रिय:
हार्दिक बधाई आदरणीय रचना भाटिया जी।बहुत सुंदर संदेश प्रद लघुकथा।आपकी लघुकथा का प्रथम वाक्य दो पात्रों द्वारा बोला गया है लेकिन आपने उसे एक ही पंक्ति में बिना किसी विभाजन चिंन्ह के एक सार लिखा है। जो कि सही नहीं लगता।
" माँ,रोटी पर मक्खन तो रखा नहीं।हाँ,देती हूँ।"
इसे इस प्रकार लिखा जाना चाहिये।
" माँ,रोटी पर मक्खन तो रखा नहीं।“
“हाँ,देती हूँ।"
हर पात्र का डॉयलाग अलग अलग पंक्ति में लिखना उचित होता है भले ही वह डॉयलाग कितना ही छोटा हो।
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