For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

122 122 122 12

रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया

ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया

मेरे साथ गम का चले कारवाँ

अकेला मैं फ़िर क्यों बता हो गया

जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे

समझ लो वही अब ख़ुदा हो गया

नहीं ज़िन्दगी ज़िन्दगी सी रही

सफ़र यह भी अब बदमज़ा हो गया

सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई

तसव्वुर का इक आसरा हो गया

अँधेरों की आदत बना लीजिए

ज़िया से अधिक फ़ासला हो गया

नज़र को नज़र से मिलाते ही वो

मेरा हमसफ़र रहनुमा हो गया

कलाकारी बातिल की तो देखिए

पलों में ही सब सच हवा हो गया

मौलिक व अप्रकाशित

रचना निर्मल

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2020 at 11:52am

आ. रचना जी,

इस्लाह के बाद ग़ज़ल और निखर गयी है 
बहुत बधाई 

Comment by Rachna Bhatia on October 15, 2020 at 4:25pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी , आदाब। हौसला बढ़ाने के लिए बेहद आभार । जी , एकवचन और बहुवचन में थोड़ा कन्फ्यूज़न हो गया। दूसरा,सर् की बात भी सही है । मैंने सर् के अनुसार मिसरे ठीक कर लिए हैं । बहुत-बहुत धन्यवाद।

Comment by Rachna Bhatia on October 15, 2020 at 4:21pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्कार। ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रियः। जी, मैंने सर के अनुसार अपने मिसरे ठीक कर लिए हैं ।बेहद शुक्रियः।

Comment by Rachna Bhatia on October 15, 2020 at 4:18pm

आद समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर् क़ीमती समय देने तथा इस्लाह देने के लिए  मैं आपकी अत्यंत आभारी हूँ। जी,सर् मैं समझ गई ।ऊला भी आपने मेरे भावों के अनुसार सुझाया। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।बाकी दोनों मिसरे भी मैं आपकी सलाह के अनुसार कर लेती हूँ। बेहद शुक्रियः।

Comment by Samar kabeer on October 15, 2020 at 3:36pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया

ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया'

इस मतले के कथ्य में एक बारीक नुक्ता है,उसे समझें , रिदा से पाँव बड़ा होने से ख़ुदा क्यों ख़फ़ा होगा? उचित लगे तो ऊला यूँ कर सकती हैं:-

'मैं जब अपने क़द से बड़ा हो गया'

'जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे'

इस मिसरे में सहीह शब्द "ना मुमकिन" है, इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-

'जिसे छूना मुमकिन नहीं दोस्तो'

'सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई'

इस मिसरे में 'सुख़न' और 'शाइरी' एक ही बात है, मिसरा यूँ कर सकती हैं:-

'मियाँ शाइरी की बदौलत हमें'

Comment by सालिक गणवीर on October 15, 2020 at 9:59am

आदरणीया रचना भाटिया जी

सादर अभिवादन
उम्दा  ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें. सादर. मतले पर मैं भी अमीर साहब से इत्तेफाक रखता हूँ. देखिएगा. 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2020 at 7:54pm

रचना भाटिया जी आदाब, मतले के इलावा अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।

"रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया

  ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया" 

मतले का कथ्य तथा मिसरों में रब्त स्पष्ट नहीं है साथ ही ऊला मिसरे का शिल्प ठीक नहीं है रिदा यानि ओढ़ने की चादर और पा यानिकी पैर (जोकि बहुवचन हैं) को बड़ा हो गया (एक वचन) के रूप में कहना दुरुुस्त नहीं है। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service