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रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया
ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया
मेरे साथ गम का चले कारवाँ
अकेला मैं फ़िर क्यों बता हो गया
जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे
समझ लो वही अब ख़ुदा हो गया
नहीं ज़िन्दगी ज़िन्दगी सी रही
सफ़र यह भी अब बदमज़ा हो गया
सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई
तसव्वुर का इक आसरा हो गया
अँधेरों की आदत बना लीजिए
ज़िया से अधिक फ़ासला हो गया
नज़र को नज़र से मिलाते ही वो
मेरा हमसफ़र रहनुमा हो गया
कलाकारी बातिल की तो देखिए
पलों में ही सब सच हवा हो गया
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
Comment
आ. रचना जी,
इस्लाह के बाद ग़ज़ल और निखर गयी है
बहुत बधाई
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी , आदाब। हौसला बढ़ाने के लिए बेहद आभार । जी , एकवचन और बहुवचन में थोड़ा कन्फ्यूज़न हो गया। दूसरा,सर् की बात भी सही है । मैंने सर् के अनुसार मिसरे ठीक कर लिए हैं । बहुत-बहुत धन्यवाद।
आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्कार। ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रियः। जी, मैंने सर के अनुसार अपने मिसरे ठीक कर लिए हैं ।बेहद शुक्रियः।
आद समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर् क़ीमती समय देने तथा इस्लाह देने के लिए मैं आपकी अत्यंत आभारी हूँ। जी,सर् मैं समझ गई ।ऊला भी आपने मेरे भावों के अनुसार सुझाया। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।बाकी दोनों मिसरे भी मैं आपकी सलाह के अनुसार कर लेती हूँ। बेहद शुक्रियः।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया
ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया'
इस मतले के कथ्य में एक बारीक नुक्ता है,उसे समझें , रिदा से पाँव बड़ा होने से ख़ुदा क्यों ख़फ़ा होगा? उचित लगे तो ऊला यूँ कर सकती हैं:-
'मैं जब अपने क़द से बड़ा हो गया'
'जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे'
इस मिसरे में सहीह शब्द "ना मुमकिन" है, इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-
'जिसे छूना मुमकिन नहीं दोस्तो'
'सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई'
इस मिसरे में 'सुख़न' और 'शाइरी' एक ही बात है, मिसरा यूँ कर सकती हैं:-
'मियाँ शाइरी की बदौलत हमें'
आदरणीया रचना भाटिया जी
सादर अभिवादन
उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें. सादर. मतले पर मैं भी अमीर साहब से इत्तेफाक रखता हूँ. देखिएगा.
रचना भाटिया जी आदाब, मतले के इलावा अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।
"रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया
ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया"
मतले का कथ्य तथा मिसरों में रब्त स्पष्ट नहीं है साथ ही ऊला मिसरे का शिल्प ठीक नहीं है रिदा यानि ओढ़ने की चादर और पा यानिकी पैर (जोकि बहुवचन हैं) को बड़ा हो गया (एक वचन) के रूप में कहना दुरुुस्त नहीं है। सादर।
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