जो शेख़ ओ बरहमन में यारी रहेगी
जलन जलने वालों की जारी रहेगी.
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मियाँ जी क़वाफ़ी को समझे हैं नौकर
अना का नशा है ख़ुमारी रहेगी.
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गले में बड़ी कोई हड्डी फँसी है
अभी आपको बे-क़रारी रहेगी.
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हुज़ूर आप बंदर से नाचा करेंगे
अकड आपकी गर मदारी रहेगी.
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हमारे ये तेवर हमारे रहेंगे
हमारी अदा बस हमारी रहेगी.
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हुज़ूर इल्तिजा है न हम से उलझिये
वगर्ना यूँ ही दिल-फ़िगारी रहेगी.
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ग़ज़ल “नूर” तुम पर न ज़ाया करेंगे
करेंगे तो वो तुम से भारी रहेगी.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है, हार्दिक बधाई ।
शुक्रिया आ. तेजवीर सिंह साहब
शुक्रिया आ. मीत जी
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलेश "नूर" जी।बेहतरीन गज़ल।
गले में बड़ी कोई हड्डी फँसी है
अभी आपको बे-क़रारी रहेगी.
आ. चेतन प्रकाश जी,
आप जिस शेर से ग़ज़ल की तरफ मुड़े असल में अगर वह वैसा ही है जैसा आपने लिखा है तो क्षमा करें.. वो शे'र ही नहीं है.. शेर होने के लिए मिसरों का बह्र में होना एक आवश्यक शर्त है..
खैर.. मैं मान सकता हूँ कि आपने कोट करने में खिन कुछ भूल की होगी...
//सतही व्यवहारों पर नौंक- झौक और दरबार की पनाह में दण्ड देने की अपेक्षा ही उस्ताद शायर जौक़ साहब को मामूली आदमी बना देती है। और, स्वार्थपरता के लिए सीमाएं लाँघने की वज़ह उस्ताद शायर ग़ालिब भी मेरे आदर्श नहीं हैं। //
मान्यवर मैं शाइर को उसके शे'र से जज करता हूँ न कि उसके आचार व्यवहार से..
ग़ालिब क्या था, कैसा था में मेरी दिलचस्पी कम है.. ग़ालिब क्या क्र गया यह महत्वपूर्ण है.. हर शाइर की निजी ज़िन्दगी होती है जो उसे अपने तरीके से जीने का अधिकार होता है..अत: उस पर टिप्पणी न ही ही जाए तो बेहतर रहेगा..
गंगा जमुनी तहज़ीब की बात करना और बात है और उसका पालन करना और बात.. मेरा इशारा आप समझेंगे और उस घटिया शेर पर जाएंगे जहाँ शेख़ और बिरहमन की जोड़ी का मज़ाक बनाया गया है तब आप समझेंगे कि ऐसे कुत्सित प्रयासों को निस्तेज करना कितना आवश्यक है..ताकि सौहार्द्र बना रहे..
आपका मार्गदर्शन भविष्य में भी मिलता रहेगा ऐसी अपेक्षा है मुझे और मैं भी यह वादा करता हूँ कि मंच पर, जेवन में या खिन भी कोई इस गंगा जमुनी तहज़ीब पर व्यंग्य करेगा, कटाक्ष करेगा तो नूर का कलम कटार बन कर वही करेगा जो ऐसे में करना चाहिए..
मुझे अपनी इमेज चमकाने के लिए गुड बॉय बनना कतई गवारा नहीं है..मैं जैसा हूँ, मेरी ग़ज़ल भी वैसी ही है...और ऐसी ही रहेगी.
सादर
बंधुवर, नीलेश नूर साहब, आदाब, तकनीकी कारणोंं से मेरा जवाब आपका तक ठीक से नहीं पहुँच पाया, देखा सब गडमड है, सो....
बंधुवर, नीलेश नूर साहब , मेरी टीप पर आपका जवाब, अभी पढ़ा। मुझे सन् 1970 मे प्रसिद्ध पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपा गजल पर छपा एक आलेख स्मरण हो आया। आलेख
के शुरु में ही एक शेर था, कदाचित लेखक ( कवि शायर गोविन्द व्यास) की ही था,
ग़जल के मन्दिर में दीवाना मूरत रखकर चा गया,
कौन इसे पहले पूजेगा होड़ लगी देवताओं मे।
कहने की आवश्यकता नही, उक्त शेर गज़ल का स्वरूप, स्पष्ट रूप से तय कर जाता हे। मैं उस समय बालक था, गजल की उक्त प्रकृति, उसका बिम्ब और स्वरुप सभी स्थायी रूप से मानस पटल अंकित हो गये। और, आज तक एक अच्छी ग़जल मेरे लिए श्रेष्ठतम काव्य है, आप उसे दिव्य कह सकते है। ग़जल हो अथवा श्रेष्ठ काव्य, देवी सरस्वती कहिए य़ा कि प्राचीन यूनानी ग्रन्थों, नव रसों के सापेक्ष काव्य की नौ देवियाँ, आशीष है, जिसे शायर अथवा कवि ईश कृपा से उसकी प्रेरणा से वरदान स्वरूप प्राप्त करता है।
तंजोमिज़ाज की शायरी न तो अच्छे दर्जे की समझी जाती है, और न कभी समझी गयी। मेरा संकेत आप, मान्यवर, समझ रहे होंगे। वैसे, क्षमा करे, सतही व्यवहारों पर नौंक- झौक और दरबार की पनाह में दण्ड देने की अपेक्षा ही उस्ताद शायर जौक़ साहब को मामूली आदमी बना देती है। और, स्वार्थपरता के लिए सीमाएं लाँघने की वज़ह उस्ताद शायर ग़ालिब भी मेरे आदर्श नहीं हैं। उस्ताद शायर मीर तक़ी मीर मुझे बेहतर लगते हैं। गंगा जमुनी तहज़ीब का निबाह मुझे फिराक़ साहब में बेहतर दिखाई देता है। सधन्यवाद, !
धन्यवाद आ. समर सर
धन्यवाद आ. सालिक गणवीर साहेब
बंधुवर, नीलेश नूर साहब , मेरी टीप पर आपका जवाब, अभी पढ़ा। मुझे सन् 1970 मे प्रसिद्ध पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपा गजल पर छपा एक आलेख स्मरण हो आया। आलेख के शुरु में ही एक शेर था, कदाचित लेखक ( कवि शायर गोविन्द व्यास) की ही था,
"ग़जल के मन्दिर में दीवाना मूरत रखकर चा गया,
कौन इसे पहले पूजेगा होड़ लगी देवताओं मे।"
कहने की आवश्यकता नही, उक्त शेर गज़ल का स्वरूप, स्पष्ट रूप से तय कर जाता हे। मैं उस समय बालक था, गजल की उक्त प्रकृति, उसका बिम्ब और स्वरुप स्थायी रूप से मानस पटल अंकित हो गये। और, आज तक एक अच्छी ग़जल मेरे लिए श्रेष्ठतम काव्य है, आप उसे दिव्य कह सकते है। ग़जल हो अथवा श्रेष्ठ काव्य, देवी सरस्वती कहिए य़ा कि प्राचीन यूनानी ग्रन्थोंबंधुवर, नीलेश नूर साहब , मेरी टीप पर आपका जवाब, अभी पढ़ा। मुझे सन् 1970 मे प्रसिद्ध पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपा गजल पर छपा एक आलेख स्मरण हो आया। आलेख
के शुरु में ही एक शेर था, कदाचित लेखक ( कवि शायर गोविन्द व्यास) की ही था,
ग़जल के मन्दिर में दीवाना मूरत रखकर चा गया,
कौन इसे पहले पूजेगा होड़ लगी देवताओं मे।
कहने की आवश्यकता नही, उक्त शेर गज़ल का स्वरूप, स्पष्ट रूप से तय कर जाता हे। मैं उस समय बालक था, गजल की उक्त प्रकृति, उसका बिम्ब और स्वरुप स्थायी रूप से मानस पटल अंकित हो गये। और, आज तक एक अच्छी ग़जल मेरे लिए श्रेष्ठतम काव्य है, आप उसे दिव्य कह सकते है। ग़जल हो अथवा श्रेष्ठ काव्य, देवी सरस्वती कहिए य़ा कि प्राचीन यूनानी बंधुवर, नीलेश नूर साहब , मेरी टीप पर आपका जवाब, अभी पढ़ा। मुझे सन् 1970 मे प्रसिद्ध पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपा गजल पर छपा एक आलेख स्मरण हो आया। आलेख
के शुरु में ही एक शेर था, कदाचित लेखक ( कवि शायर गोविन्द व्यास) की ही था,
ग़जल के मन्दिर में दीवाना मूरत रखकर चा गया,
कौन इसे पहले पूजेगा होड़ लगी देवताओं मे।
कहने की आवश्यकता नही, उक्त शेर गज़ल का स्वरूप, स्पष्ट रूप से तय कर जाता हे। मैं उस समय बालक था, गजल की उक्त प्रकृति, उसका बिम्ब और स्वरुप सभ स्थायी रूप से मानस पटल अंकित हो गये। और, आज तक एक अच्छी ग़जल मेरे लिए श्रेष्ठतम काव्य है, आप उसे
दिव्य कह सकते है। ग़जल हो अथवा श्रेष्ठ काव्य, देवी सरस्वती कहिए य़ा कि प्राचीन यूनानी
ग्रन्थों नव रसों के सापेक्ष काव्य की नौ देवियाँ, आशीष है, जिसे शायर अथवा कवि ईश कृपा से
उसकी प्रेरणा से वरदान स्वरूप प्राप्त करता है।
तंजोमिज़ाज की शायरी न तो अच्छे दर्जे की समझी जाती है, और न कभी समझी गयी। मेरा संकेत आप, मान्यवर, समझ रहे होंगे। वैसे, क्षमा करे, सतही व्यवहारों पर नौंक- झौक और
दरबार की पनाह में दण्ड देने की अपेक्षा ही उस्ताद शायर जौक़ साहब को मामूली आदमी बना
देती है। और, स्वार्थपरता के लिए सीमाएं लाँघने की वज़ह उस्ताद शायर ग़ालिब भी मेरे आदर्श नहीं हैं। उस्ताद शायर मीर तक़ी मीर मुझे बेहतर लगते हैं। गंगा जमुनी तहज़ीब का निबाह मुझे फिराक़ साहब में बेहतर दिखाई देता है। सधन्यवाद,
ग्रन्थों नव रसों के सापेक्ष काव्य की नौ देवियाँ, आशीष है, जिसे शायर अथवा कवि ईश कृपा से
उसकी प्रेरणा से वरदान स्वरूप प्राप्त करता है।
तंजोमिज़ाज की शायरी न तो अच्छे दर्जे की समझी जाती है, और न कभी समझी गयी। मेरा संकेत आप, मान्यवर, समझ रहे होंगे। वैसे, क्षमा करे, सतही व्यवहारों पर नौंक- झौक और
दरबार की पनाह में दण्ड देने की अपेक्षा ही उस्ताद शायर जौक़ साहब को मामूली आदमी बना
देती है। और, स्वार्थपरता के लिए सीमाएं लाँघने की वज़ह उस्ताद शायर ग़ालिब भी मेरे आदर्श नहीं हैं। उस्ताद शायर मीर तक़ी मीर मुझे बेहतर लगते हैं। गंगा जमुनी तहज़ीब का निबाह मुझे फिराक़ साहब में बेहतर दिखाई देता है। सधन्यवाद,
नव रसों के सापेक्ष काव्य की नौ देवियाँ, आशीष है, जिसे शायर अथवा कवि ईश कृपा से उसकी प्रेरणा से वरदान स्वरूप प्राप्त करता है।
तंजोमिज़ाज की शायरी न तो अच्छे दर्जे की समझी जाती है, और न कभी समझी गयी। मेरा संकेत आप, मान्यवर, समझ रहे होंगे। वैसे, क्षमा करे, सतही व्यवहारों पर नौंक- झौक और दरबार की पनाह में दण्ड देने की अपेक्षा ही उस्ताद शायर जौक़ साहब को मामूली आदमी बना देती है। और, स्वार्थपरता के लिए सीमाएं लाँघने की वज़ह उस्ताद शायर ग़ालिब भी मेरे आदर्श नहीं हैं। उस्ताद शायर मीर तक़ी मीर मुझे बेहतर लगते हैं। गंगा जमुनी तहज़ीब का निबाह मुझे फिराक़ साहब में बेहतर दिखाई देता है। सधन्यवाद,
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