एक भ्रात है भरत के जैसा,
जिसमें कुछ पाने का भाव नहीं
समर्पित करता भ्रात चरण में,
राज्य संग सुख, चैन सभी ||
तिलभर भी छल ना मन में,
जग भी उसके साथ नहीं
कठोरता/ताने सहता सारे जन की,
मातृ की करनी उसकी सभी ||
विभीषण भी एक भ्रात उधर है
सिंहासन पर जिसकी आँख लगी
कठिन समय में भ्रात छोड़ता,
शत्रुओं को बताता भेद सभी ||
ना अंतक्रिया भी भ्रात की करता
सुख-भोग से भी इंकार नहीं
मौका मिले तो विवाह भी करले
माँ समान अपनी भाभी अभी ||
गूढ ज्ञान है दोनों भ्रात में
ये देव-दानव की बात नहीं
एक बना सदा शक्ति भ्रात की
दूजे को चाहिए सुख सभी ||
दोनों भ्रात में अंतर कितना
केवल, ये राम राज्य की बात नहीं
हर चरित्र को धारण करते
समाज में है ऐसा लोग अभी ||
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जनाब फूल सिंह जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई फूलसिंह जी, सादर अभिवादन । उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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