भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
*
आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
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जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
*
बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
*
पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
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बाँटना हर द्वार जाकर है उसे भी
मन को जो अन्जान सुख हर्षा रहा है।६।
*
वर्ष नूतन फिर से भर भण्डार देना
लूटने वाला बरस तो जा रहा है।७।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
साफ सुथऱी दोस्त धामी ये ग़ज़ल है
शेऱ नम्बर दो मुझे 'झटका' रहा है ।
आँख जब आँसू गिराने को विवश थी,
ऊला मिसरा यही बेहतर है, झराने जैसी
क्रिया होती ही नहीं, बंधुवर, 'धामी' !
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