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भाई सालिक गणवीर साहेब , आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया , आदरणीय Samar kabeer साहेब ,हमेशा मेरी शकाओं का समाधान करते रहते हैं , ईश्वर से प्रार्थना है वे हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहें , उनके दिए समाधान सटीक होते हैं | इसके लिए उनका आभार जताना बहुत छोटा शब्द है , सच में तो आभार से कोई बड़ा शब्द भी हो तो भी उनका ऋण चुकाना मुश्किल है |
आदरणीय भाई गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' जी
सादर अभिवादन
बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है आपने ,सर्वप्रथम इसके बधा इयाँ स्वीकार कीजिये। और इससे भी बढ़ कर कबीर साहब की टिप्पणियाँ हैं जिसमें उन्होंने विस्तार पूर्वक मेरी भी बहुत सारी शंकाओं का समाधान कर दिया है, जिसके लिए मैं उनको ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आँखों की कमज़ोरी के कारण मेरे लिये बहुत ज़ियादा लिखना पढ़ना मुश्किल होता है, लेकिन आप जैसे दोस्तों और ओबीओ के लिये मैं ये तकलीफ़ बख़ुशी गवारा कर लेता हूँ ।
//किसी संज्ञा शब्द का बहुवचन नहीं हो सकता ,ये बात समझ नहीं आई//
कुछ इस्म (संज्ञा)ऐसे होते हैं जिनका बहुवचन नहीं होता,मिसाल के तौर पर:-
सलासिल, ख़ाक,धूल,काबा, क़ुरआन, गीता, दार आदि ऐसे शब्द हैं जिनका बहुवचन नहीं होता ।
लेकिन यहाँ हम "दार" शब्द के बारे में चर्चा कर रहे हैं ।
"दार" शब्द औस्ताई ज़बान के लफ़्ज़ 'दवरु' से फ़ारसी में माख़ूज़ 'दार' उर्दू में अस्ल सूरत और मफ़हूम के साथ दाख़िल हुआ और बतौर इस्म इस्तेमाल होता है,सबसे पहले सन 1649ई.को 'ख़ावर नाम:' में तहरीरन मुस्त'अमिल मिलता है,और एक वचन में ही इस्तेमाल होता है ।
//दार और दारों का प्रयोग अक्सर प्रत्यय के रूप में किया जाता है , जैसे पहरेदार-पहरेदारों ,अज़ादारों , पर्दादारों आदि //
आपके इस सवाल का जवाब 'दार' शब्द के अर्थ में है,देखें:-
'दार'(फ़ारसी-मुअन्नस)सूली,फाँसी, सलीब,लकड़ी का डंडा,(लाहिक़: फ़ाइली)मसदर दाशतन का सीग़-ए-आम्र जो किसी इस्म के बाद आकर उसे इस्म-ए-फ़ाइल बना देता है,और रखने वाला का अर्थ देता है,जैसे दिल दार, आबदार, आदि ।
//माफ़ी और मुआफ़ी और माफ़ और मुआफ़ में भी भ्रम की स्थिति है , क्या गद्य में माफ़ी और माफ़ सही है और पद्य में मुआफ़ी सही है ? हालाँकि दोनों के प्रयोग से कथ्य में कोई अंतर् नहीं पड़ता | यही समस्या शुरू'अ -शुरू , सहीह -सही, शम 'अ -शमा ,बअ 'द-बाद आदि शब्दों में भी है//
इस सवाल का जबाब ये है कि भाषा के ज्ञान की कमी के कारण ये सूरत पैदा होती है, लोग आसानी तलाश करते हैं,और पढ़ना नहीं चाहते,आजकल तो इंटरनेट पर हर तरह की सुविधा मौजूद है,किसी भी उर्दू या फ़ारसी शब्द का सहीह उच्चारण मालूम किया जा सकता है,लेकिन इंटरनेट ने भी आम बोल चाल के शब्दों को भी सहीह शब्दों के उच्चारण के साथ शामिल कर दिया है,इससे हिन्दी भाषा जानने वालों के लिये शंका की स्थिति पैदा हो जाती है, वो हिन्दी भाषी जो उर्दू भी अच्छी तरह जानते हैं कभी 'मुआफ़' को माफ़, शुरू'अ को शुरू, शम'अ, को शमा नहीं इस्तेमाल करते, 'सहीह' और 'सही'दो अलग अलग शब्द हैं, सहीह का अर्थ होता है पूरा,कामिल,तस्दीक़,दस्तख़त,और सही का अर्थ होता है,ठीक,बजा, माना, क़ुबूल,मंज़ूर ।
सहीह शब्द:-
शम'अ--21
शुरू'अ'--121
मुआफ़--121
मुआफ़ी--122
सहीह--121
सही--12
शह्र--21
क़ह्र--21
उम्मीद है आप मुतमइन हुए होंगे?
आदरणीय Samar kabeer साहेब , आपने जो जानकारी दी है मैंने भविष्य के लिए नोट कर ली है , हालाँकि किसी संज्ञा शब्द का बहुवचन नहीं हो सकता ,ये बात समझ नहीं आई , तलवार = तलवारों , पानी =पानियों जैसे बहुवचन के प्रयोग देखे हैं ये भी संज्ञा शब्द ही हैं फिर सूली का बहुवचन सूलियों दार का दारों क्यों न किया जाये ? कृपया विस्तार से समझाएं | जब समय हो | हालाँकि इसका कभी प्रयोग हुआ या नहीं यह बता नहीं सकता | दार और दारों का प्रयोग अक्सर प्रत्यय के रूप में किया जाता है , जैसे पहरेदार-पहरेदारों ,अज़ादारों , पर्दादारों आदि | माफ़ी और मुआफ़ी और माफ़ और मुआफ़ में भी भ्रम की स्थिति है , क्या गद्य में माफ़ी और माफ़ सही है और पद्य में मुआफ़ी सही है ? हालाँकि दोनों के प्रयोग से कथ्य में कोई अंतर् नहीं पड़ता | यही समस्या शुरू'अ -शुरू , सहीह -सही, शम 'अ -शमा ,बअ 'द-बाद आदि शब्दों में भी है | सादर |
'और हुई नफ़रत से तीखी नोकें दारों की'
आपकी और मंच की जानकारी के लिये बता रहा हूँ कि 'दार' शब्द इस्म(संज्ञा) है और इसे एक वचन में ही लेना उचित होता है,अगर कहीं उर्दू शाइरी में इसका बहुवचन इस्तेमाल हुआ हो तो कृपया उदाहरण पेश करें ।
दूसरी बात "मुआफ़ी" शब्द को 'माफ़ी' सिर्फ़ फिल्मी गीतों में ही इस्तेमाल होते देखा गया है,उर्दू शाइरी में इसे 'मुआफ़ी' ही इस्तेमाल होता है,इसके बावजूद आप ऐसे ही इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपकी मर्ज़ी, बताना मेरा फ़र्ज़ था सो बता दिया ।
आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ | दारों =सूलियों ही अर्थ लगाया है मैंने | मुआफ़ी और माफ़ी दोनों शब्द प्रचलन में देखे हैं यहाँ बह्र में माफ़ी आ रहा है इसलिए प्रयोग किया | सादर |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'और हुई नफ़रत से तीखी नोकें दारों की'
इस मिसरे में 'नोकें दारों' समझ नहीं आया,बताने का कष्ट करें ।
'गाली देकर वो कहते हैं माफ़ी भी दे दो'
इस मिसरे में सहीह शब्द "मुआफ़ी" है,देखियेगा ।
भाई Krish mishra 'jaan' gorakhpuri जी , आपकी बातों का न तो मैंने बुरा माना है और न ही भविष्य में मानूंगा | मैं जो हूँ मैंने वही अपने बारे में लिखा है , दरअसल ग़ज़लियत सही में क्या है मेरे पल्ले पड़ता ही नहीं है , मैं चार साल से ग़ज़ल कहने की कोशिश कर रहा हूँ जो ग़ज़ल के बारे में जानने के लिए बहुत कम समय है , आपको कुछ खटके और कमी लगे तो अवश्य अपना करम फरमाते रहें , मैं अवश्य समझने की कोशिश करूँगा , क्योंकि आप जैसे गुणी जनों के कारण ही मैं कुछ न कुछ नज़्म करने के लायक हुआ हूँ | वरना उर्दू लिखना पढ़ना न आने के कारण ग़ज़ल के मुआमले में मैं बहुत पीछे हूँ | सुख़न को समझने का सही तरीका बहस या फिर चर्चा ही है | आप अपने अमूल्य विचारों से अवगत करवाते रहें | एक बार फिर आपकी हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रिया |
आ. गिरधारी सिंह गहलोत सर जी, मेरी दूसरी बात सही नकली, मेरे समझ की कमी के कारण, गजल के मतले का आशय मैं आपकी टिप्पणी से ही समझ सका।
आ. अभी तक काफ़ियाबन्दी करना ही मैं सीख पाया हूँ इसलिए जो सुनी सुनाई /पढ़ी बातें हैं उन्हीं आधार पर मैंने कहा कि ग़ज़लियत का अभाव है... ..कि बह्र में सारा कथ्य हो, अर्थ भी दे रहा हो, लेकिन कुछ खटके, कुछ कमी लगे तो समझ लेना ग़ज़लियत का अभाव है, ग़ज़लियत में शायद " शेर दिल को ऐसा कचोट-खरोच जाए या गुदगुदा जाए, छेड़ या छेद जाएं कि एक लंबे समय तक उसकी याद बनी रहे। आपके इस अनुज की बात यदि आपको बुरी लगे तो अल्पबुद्धि समझ क्षमा करियेगा।सादर।
भाई जान गोरखपुरी जी , ग़ज़ल की सांगोपांग समीक्षा के लिए और हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत दिली शुक्रिया | वैसे तो मुझे मालूम नहीं ग़ज़लियत क्या है , मैं तो क़ाफ़ियाबंदी करना सीख गया हूँ ,जो दिल में ख़याल आते हैं सीधे सपाट बयानी कर देता हूँ , किसी को ग़ज़लियत दिखाई दे तो ठीक न दे तो भी ठीक | वैसे मतले में मेरे कहने का आशय सिर्फ इतना है ,किसी ने मुझे याद किया तो क्यों किया क्योंकि मेरी याद से आंसू आएंगे और उस वजह से आँखों की सफ़ाई होगी ,ये किसकी मंशा है | इसमें ग़ज़लियत है या नहीं मैं नहीं जानता मैंने एक ख़याल पेश किया |
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